५६० सम्पूर्ण गांधी वाङमय और बहुमूल्य तथा अपधातु अधिनियमके जिस खण्डका उल्लेख किया गया है, उसके सम्बन्ध में मन्त्रिगण यह कहना चाहते हैं कि उस कानूनका सम्बन्ध मुख्यतः, बल्कि लगभग सम्पूर्णतः, खनिज पदार्थों और खननके अधिकारोंसे है, और ट्रान्सवालके खनन सम्बन्धी कानूनके अन्तर्गत रंगदार लोग इन अधिकारोंसे सदा ही वंचित रहे हैं। इसमें सन्देह नहीं कि खण्ड १३० की शब्द-योजना इतनी व्यापक है कि १९०८ के कानून तथा उसके पहलेके स्वर्ण कानूनके अन्तर्गत दिये गये सारे अधिकार उसमें समाहित हो जाते हैं; किन्तु १९०८ के अधिनियम संख्या ३५ के पास होनेके पूर्वं भारतीयोंने जो भी कारोबार, या कारोबार चलानेके अधिकार, प्राप्त किये थे, उनमें किसी प्रकारका हस्तक्षेप करनेका कोई इरादा नहीं है । मन्त्रियोंको बताया गया है कि क्लार्क्सडॉ के जिन बाड़ोंके सम्बन्धमें [ पुलिस ] कार्रवाई की गई है, उन्हें भारतीयोंने इस कानूनके पास होनेके बाद व्यावसायिक उद्देशोंसे चोरी-छिपे प्राप्त किया था, और इस प्रकार उल्लिखित खण्डका उल्लंघन किया था । उनका खयाल है कि यह कार्रवाई स्थानीय व्यापारी समुदायके इशारेपर की गई है; क्योंकि वह इस बातको लेकर बहुत क्षुब्ध हैं कि भारतीयोंके चलते गोरे व्यापारियोंका कारोबार बड़ी तेजीसे उखड़ता चला जा रहा है । फिर भी मन्त्रिगण आगे जाँच-पड़ताल करवा रहे हैं ताकि उक्त कानूनके खण्ड १३० की धाराओंको बेजा सख्ती से अमल में लानेकी सम्भावनाको यथासम्भव टाला जा सके । जे० सी० स्मट्स (ख) दिसम्बर २, १९११ सन् १९०८ के ट्रान्सवाल कस्वा कानून संशोधन अधिनियम और ट्रान्सवाल स्वर्ण-कानून त ब्रिटिश भारतीयों की स्थिति के बारेमें महाविभव गवर्नर-जनरल महोदयको १ सितम्बरको टिप्पणी, संख्या १५/१७०, के सम्बन्धमें मन्त्रिगण यह निवेदन करना चाहते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है, अदालतोंने टैम्बलिनके मामले में दिये गये अपने हालके निर्णय द्वारा १९०८ के ( ट्रान्सवाल) कानून ३५ के खण्ड १३० के अर्थ तथा व्याप्तिकी उस हद तक अन्तिम व्याख्या कर दी है, जिस हद तक उससे रंगदार लोगोंका कस्बों के बाहरके घोषित क्षेत्रोंमें गोरे मालिकोंसे पट्टेपर भाड़े लेने और उन्हें अपने कब्जे में रखनेका अधिकार प्रभावित होता हैं । खान क्षेत्रोंकी सीमामें आनेवाली बस्तियाँ ( टाउनशिप्स) में ऐसे लोगोंकी स्थितिके सम्बन्ध में महाविभवको ज्ञात ही होगा कि सरकारी और गैरसरकारी, दोनों तरहके कस्बोंमें जमीनके पूर्ण स्वामित्वके १. रुडीपूर्टमें अल्फ्रेड टैम्बलिन नामक एक व्यक्तिपर अहमद खाँ और अब्दुल्ला खाँ नामक दो एशियाइयोंको शिकमी-पट्टे पर खान क्षेत्रमें एक बाड़ा देनेके कारण १९०८ के स्वर्ण अधिनियमके खण्ड १३० के अन्तर्गत मुकदमा चलाया गया । उसके वकीलने यह दलील पेश की कि पुराने स्वर्ण कानूनके अन्तर्गत बाड़ा-मालिकको किसी भी रंगदार व्यक्तिको शिकमी-पट्टे पर अपना बाड़ा देनेका अधिकार प्राप्त था और वर्तमान स्वर्ण कानूनके खण्ड ७७ के अन्तर्गत रंगदार लोगोंको बाड़ेका स्वामित्व प्राप्त करनेका अधिकार भी दिया गया है । किन्तु, इसके बाद सुनवाई स्थगित कर दी गई। आगे चलकर क्रूगर्सडोंके एक मजिस्ट्रेटने टैम्बलिनको दोषी पाया और उसे सजा दे दी । अपील करनेपर दक्षिण आफ्रिका के सर्वोच्च न्यायालयकी ट्रान्सवाल शाखाने टैम्बलिनको रिहा कर दिया और यह व्यवस्था दी कि सम्बन्धित दोनों एशियाई स्वर्ण-कानूनके खण्ड ७७ के अन्तर्गत सुरक्षित हैं। देखिए इंडियन ओपिनियन, २४-६-१९११ और २-९-१९११ । Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/५९८
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