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जनरल स्मट्ससे मुलाकातका सार


फ्री स्टेटके सदस्य अभीतक किसी भी एशियाईको प्रविष्ट होने देनेके विरुद्ध हैं। मेरा खयाल है, मैं उन्हें विधानसभामें हरा सकता हूँ; किन्तु सीनेट विधेयकको अस्वी- कृत कर देगी। इसलिए मैं इस विधेयकको यदि इस अधिवेशन में पास न करा सका, तो अगले अधिवेशन में पास करवाना चाहता हूँ। किन्तु इस बीच में शान्ति चाहता हूँ। मैं आपके लोगोंको तंग नहीं करना चाहता। यह आप जानते हैं। और मैं नहीं चाहता कि आप लड़नेके लिए भारतसे और दूसरी जगहोंसे लोगोंको लायें। मैं साम्राज्य- सरकारकी सहायता करना चाहता हूँ, और साम्राज्य-सरकार मेरी सहायता करना चाहती है। मैं आपकी सहायता करना चाहता हूँ और आप मेरी सहायता करना चाहते हैं। क्या आप हमारे दृष्टिकोणको नहीं समझना चाहते ?"

गांधीने बीचमें कहा: "मैं अवश्य समझना चाहता हूँ।" स्मट्सने आगे कहा : "मैं जानता हूँ कि आप लोगोंके कई नेता हैं। मैं जानता हूँ कि आप उदार और सच्चे हैं। यह मैंने साम्राज्य-सरकारसे कहा है। आपको अपने तरीकेसे लड़नका अधिकार है। किन्तु यह देश काफिरोंका है। हम गोरे लोग मुट्ठी-भर है। हम नहीं चाहते कि यहाँ एशिया घुस आये। अब चूंकि नेटाल प्रवासियोंको नहीं आने देगा, इसलिए मुझे आशा है कि मैं इस प्रश्नको हल करे लूंगा। किन्तु हम आपके मुकाबले कैसे टिक सकते है ? मैंने आपकी पुस्तिका[१] पढ़ी है। आपकी जातिका रहन-सहन सीधा-सादा है और वह मितव्ययी है। वह कई बातोंमें हमारी अपेक्षा अधिक चतुर है। आपकी सभ्यता हजारों साल पुरानी है। हमारी, जैसा कि आप कहते है, केवल एक प्रयोग है। कौन जानता है कि यह समस्त अभिशप्त व्यवस्था जल्दी ही समाप्त हो जाये । किन्तु आप जानते हैं, हम यहाँ एशियाको नहीं आने देना चाहते। किन्तु जैसा कि मैं कहता हूँ, नेटाल-जैसी कठिनाई हमारे सामने नहीं है, इसलिए मैं यहाँकी समस्या सुलझा लूंगा। पर मुझे समय चाहिए। मैं इस हालतमें भी फ्री स्टेटके सदस्योंको हरा दूंगा। मगर आप आक्रमण न करें। आप जानते है कि इस समस्त प्रश्नपर साम्राज्य- सम्मेलनमें विचार किया जायेगा। इसलिए आप थोड़ा रुकें । अब सोचकर बतायें कि इसपर आपका क्या कहना है । वे कुछ रुककर फिर बोले : “मैं समझ नहीं पाता कि आपके देशबन्धु किस तरह सब जगह पहुँच जाते हैं। इन दिनों मेरे पास व्यापारियों विरुद्ध और शिकायतें आई है। भविष्य में कठिनाई इन्हींको लेकर होगी। मैं उनको परेशान करना नहीं चाहता। मैं स्थिति ज्योंकी-त्यों रहने देना चाहता हूँ। किन्तु मैं नहीं जानता कि क्या होगा। आप टससे-मस नहीं होते। फिर विषय बदलते हुए स्मट्सने कहा : “गांधी, आप अपने निर्वाहके लिए क्या कर रहे है ?

गांधी : मैं फिलहाल वकालत नहीं कर रहा हूँ।

स्मट्स : किन्तु तब आपका निर्वाह कैसे होता है ? क्या आपके पास बहुत धन है ?

गांधी : नहीं। मैं टॉल्स्टॉय फार्ममें दूसरे सत्याग्रहियोंकी तरह ही गरीबीसे रह रहा हूँ।


१.

११-३

  1. हिन्द स्वराज्य, देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ६-६९ ।