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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लिए टाटके बिछावन तैयार करवा लेने चाहिए। वे देशमें भी काम आयेंगे। इसलिए उन्हें सीकर और धोकर तैयार रखना चाहिए। उनके किनारे भी सी लिये जायें। [प्रत्येकके लिए ऐसे दो बिछावन हों तो और भी अच्छा। एक नीचे और दूसरा ऊपर बिछाया जा सकता है। और यदि इन्हें किसी रंगसे रंगा जा सके तो बहुत अच्छा हो; इसपर विचार करना। पानीके लिए में जो कलसा लाया हूँ उस तरहके बहुत कलसे हमें चाहिए। हमारे पास जैतूनके तेलके [खाली] डिब्बे पड़े है, यदि उनकी मरम्मत करवाकर ढक्कन लगा दिये जायें तो शायद सस्ता पड़े। ये इस तरह बनवाये जायें कि उनका देशमें भी इस्तेमाल किया जा सके। कम्बल तो सबके लिए होंगे ही। [प्रत्येकके लिए] कमसे-कम दो और अधिकसे-अधिक तीन कम्बल होने चाहिए। [अपने पास] भारी सामान रखना व्यर्थ है। मैं चाहता हूँ कि [जहाजसे] प्रत्येक लड़का देशमें स्वदेशी पहरावेमें उतरे। छोटे बच्चोंको एक लुंगी, एक कुर्ता तथा हमारे पास मखमलकी जैसी गोल टोपी है वैसी टोपी पहननी चाहिए तथा अन्य लोगोंको घोती, कुर्ता और टोपी। तुम जैसे बड़े लड़कोंको साफा और अंगरखा पहनना चाहिए। लेकिन इसपर तुम्हें खुद विचार करना चाहिए। मेरे ही विचारोंके अनुरूप करनेकी खास जरूरत नहीं है। मैं लड़कोंके लिए जतोंकी जरूरत महसूस नहीं करता। फिर भी चप्पलें हों तो उन्हें रख सकते हैं; नई चप्पलें नहीं बनवानी चाहिए। लेकिन इसपर मेरा आग्रह नहीं है। उसपर भी विचार करना। प्रत्येक [लड़का] दायें हाथसे भोजन करना सीख ले तथा जमीनपर पलथी मारकर बैठ सके तो अच्छा हो। यह सब देशमें जाकर सीखना तो उचित न होगा। थाली भी गोदमें न रखें। यह सब [नियम] हमारे साथ आनेवालोंपर लागू होते हैं। सब लोगोंके जमीनपर बैठकर भोजन करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। ऐसा करोगे तो तुम्हें दिनमें तीन बार गीले कपडेसे फर्श भी पोंछना होगा। लेकिन यह उचित ही होगा। इसपर भी विचार करना। बड़ोंका कैसे सम्मान किया जाता है, यह भी सीख लेना चाहिए। हम जो काम छोटे बच्चोंसे करवाना चाहते है वह हमें स्वयं करके दिखलाना पड़ेगा। आरम्भमें कुछ कठिनाई होगी, लेकिन वह उठाई ही जानी चाहिए। उन्हें पवित्र और अपवित्रमें भेद करना आना चाहिए। अपने भारत जाने या न जानेकी परवाह किये बिना हमें सब आवश्यक तैयारी कर लेनी चाहिए। हमने लड़कोंके लिए पाखानोंमें इस्तेमाल किये जानेवाले कागज कुछ दिनोंके लिए बन्द कर दिये थे पर बादमें ढीले पड़ गये। इनका इस्तेमाल अब फिरसे बन्द कर देना ही ठीक जान पड़ता है। बड़े लड़कोंको, धैर्यपूर्वक इन परिवर्तनोंका उद्देश्य समझाना चाहिए। उन्हें बम्बई प्रदेशकी भौगोलिक स्थितिकी जानकारी भी होनी चाहिए। स्टीमरसे ही धोती पहननेका अभ्यास शुरू कर देना है। हमें अपने साथ क्या-क्या खानेकी चीजें, कितनी मात्रामें तथा कैसे ले जानी चाहिए, इसपर भी विचार करना। एनेमलके बर्तन जितने कम हों उतना ही अच्छा। पानी आदिके प्याले पीतलके होनेसे काम चलेगा। भोजनमें नीबू आदि डालना पड़े तो उसके लिए एनेमलके जो बर्तन पड़े हैं, उन्हें साथ ले लेंगे, लेकिन जहाँतक बने इनका त्याग करना है। इन बर्तनोंके बनाने में कितने लोगोंका विनाश ही हो जाता है। शरीरको मार-पीटसे जो क्षति पहुँचती है, उससे भी अधिक क्षति इन बर्तनोंके