पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/४१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७७
पत्र : सी० एफ० ऐंड्रथजको


था। जहाजसे भेजे, तुम्हारे पत्रको विस्तृत रूपसे लिखकर मैने 'इंडियन ओपिनियन' को भेज दिया था। मैंने उसमें श्रीमती गांधी और मणिलालका नाम नहीं दिया, क्योंकि वे तो तुम्हारे अपने ही हैं। मैने कैलेनबैक, पोलक और वेस्टके नाम भी उसमें इसलिए शामिल नहीं किये कि दूसरे नामोंके साथ उनको रखना ठीक नहीं जॅचा। यदि तुमने उनको अभीतक अलगसे पत्र न लिखा हो तो समय निकालकर लिख ही देना। बादके तीन नाम छोड़कर मैंने ठीक किया या नहीं, इसका निर्णय मैं नहीं कर पाया हूँ। ऐसे मामलोंमें मैं वही बात मानता हूँ जो पहले-पहल दिमागमें आती है।

आशा है कि अपने लोगों में तुम्हारा समय अच्छा कटा होगा। मैं पिछले दो हफ्तोंसे तुम्हारे पिताजीको एक पत्र लिखनेकी बात सोच रहा हूँ, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि मेरा पत्र लिखना धृष्टता मान ली जाये। वैसे पत्र तो में अभी लिख सकता हूँ किन्तु इसके बारेमें मैं तुम्हारा ही निर्णय सही मानूंगा। यदि मेरा लिखना ठीक जान पड़े तो पिताजीका पूरा नाम लिख भेजना।

पिछले हफ्ते श्रीमती गांधी मृत्युकी ऐन देहरी तक पहुंच गई थीं। इसलिए पिछले दस दिनोंमें मैंने उनकी परिचर्याके अलावा और कुछ किया ही नहीं। अभी दो दिनसे इनकी हालतमें सुधार होना शुरू हुआ है। सुधार अभी जारी है। बीमारीके कारण मुझे घरपर ही रहना पड़ा।

आज सर बेंजामिनसे बातचीत हुई थी। वे मुझे बतला रहे थे कि रिपोर्ट उनको दिखलाई गई थी और वह कुल मिलाकर अच्छी थी। पर उनकी रायको ठीक मानना हमारे लिए कोई जरूरी नहीं है, यह तुम जानते हो।

जिनके सम्पर्कमें तुम आये थे उनमें से अधिकांश लोगोंके पास तुम्हारे भाषणकी' पुनर्मुद्रित प्रतियाँ भेजी जा चुकी है। बिशपने उसकी प्रति पानेपर एक बड़ा सुन्दर पत्र लिखा है। श्रीमती ड्र कल जहाजसे लन्दन जा रही हैं। उन्होंने सत्याग्रह कोषके लिए पाँच पौंड भेजे हैं। भाषणकी प्रतियाँ भिजवानेके लिए उन्होंने कुछ नाम मेरे पास भेजे थे। साथमें अखबारकी जो कतरन भेजी जा रही है, समाचारपत्रोंने उससे मिलतीजलती बातें लिखी है। रोज ही कुछ और प्रतियोंकी माँग आती रहती हैं। भारतीयोंको इस बातके लिए तैयार करनेकी कोशिश की जा रही है कि वे अपने यरोपीय मित्रोंमें प्रतियाँ बाँट दें। डब्ल्यू० सी० श्राइनरको एक प्रति भेंटकी गई थी। उन्होंने इंग्लैंडमें अपने मित्रोंको भिजवानेके लिए छः प्रतियोंके दाम दिये है। इस प्रकार तुम्हारे कामको दोहरी सफलता मिल रही है। महान् सन्तको और दक्षिण आफ्रिका आनेके तुम्हारे उद्देश्यको मानवताके भलेके लिए बहु-प्रचारित किया जा रहा है।

१. पहली मार्चको भेजे गये इस सन्देशमें दक्षिण आफ्रिकाके मित्रोंको श्री ऐड्वजकी ओरसे धन्यवाद दिया गया था । वह इंडियन ओपिनियनके १८-३-१९१४ के अंकमें प्रकाशित हुआ था।

२. ऐंड्यजने महाकवि रवीन्द्रनायके सम्बन्धमें फरवरी १७ को विश्वविद्यालयके विद्यार्थियों के समक्ष भाषण दिया था।