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सम्पूण गांधी वाङ्मय

मुझे तार द्वारा पोरबन्दरसे अपने सबसे बड़े भाईको मृत्युका समाचार मिला है। वे मेरे लिए पिताके समान थे। उन्होंने ही मुझको लन्दन भेजा था। दक्षिण आफ्रिका चले आनेपर वे मुझसे बड़े नाराज रहा करते थे, लेकिन अपने अन्तिम पत्रमें उनका स्वर फिर बिलकुल स्नेहपूर्ण हो गया था। उससे मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ था। वे मुझे देखना चाहते थे और मैं भी जल्द ही भारत लौटनके लिए तड़प रहा था। लेकिन होनीको यह मंजूर नहीं था। अब अपने पिताके परिवारकी पाँच विधवाओं और उनके बाल-बच्चोंकी देख-रेखका भार मेरे कंधोंपर आ पड़ा है। पर मेरा मन शान्त है। समाजमें इस मृत्युका समाचार फैलनेपर काफी हार्दिकताके साथ लोग मेरे और श्रीमती गांधीके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने आते रहते हैं।'

आशा है तुम लन्दनमें स्वास्थ्य-लाभ कर लोगे और अपने लोगोंके बीच तुम्हारा समय अच्छा कटेगा।

सप्रेम

तुम्हारा
मोहन

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४०९९) की फोटो-नकलसे।

२९३. पत्र : मणिलाल गांधीको

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फाल्गुन वदी २ [मार्च १४, १९१४]

चि० मणिलाल,

मैंने तुम्हें लिखनेमें देर तो बिलकुल ही नहीं की है। जान पड़ता है, मैं पते गलत लिख देता हूँ। जमनादासके मामलेमें भी यही हुआ। श्लेसिनका पता भी गलत लिख दिया था। आगेसे में पते फिरसे पढ़ लिया करूंगा।

बा की तबीयत सुधर रही है। कैलेनबेकको मैंने अपने पत्र में बापाके बारेमें जो कुछ लिखा था, वह तुमने देख लिया होगा। चि० सामलदासको एक चिट्ठी जरूर लिख देना।

यहाँ जो षड़यंत्र रचे जा रहे हैं उनको लेकर तुम्हें परेशान होनेकी जरूरत नहीं है। मेरी मृत्यु जिस दिन आनी है, उसी दिन आयगी। कोई उसमें एक क्षण भी कम या ज्यादा नहीं कर सकता। अपने आपको मृत्युसे बचानेका सर्वोत्तम मार्ग सदा मृत्युके लिये तैयार रहना ही है। यह ठीक है कि हमें साधारण तौरपर अपने जीवनके प्रति

१. लक्ष्मीदास गांधीका देहावसान मार्च ९ को हुआ था।

२. १८८८ में कानून पढ़नेके लिए लन्दन गये थे।

३. इस सम्बन्धमें गांधीजीपर लक्ष्मीदास गांधीने जो आरोप लगाये थे, उनके गांधीजी द्वारा दिये गये उत्तर के लिए देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ४४४-४८

४. गांधीजीने “ पत्र : इंडियन ओपिनियनको", पृष्ठ ३८२-८३ में शोकाजलियोंके लिए आभार व्यक्त किया था।