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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हो उतना भाड़ा देते रहना चाहिए; उससे अधिक नहीं। यह सूत्र याद रख कर हम अपने आहारके नियम गढ़े तो उत्तम । मैं जैसा करता हूँ उस प्रकार अनेक फल इकट्ठे करके उनका स्वाद लेनेके बजाय जो मनुष्य दो-तीन तोला गहूँका दलिया पकाखाकर पाँच मिनटमें निवृत्त हो जाता है वह बहुत ज्यादा उन्नत है। किन्तु जो मनुष्य पाँच केले खा कर निर्वाह कर लेगा वह गेहूँका दलिया खा कर रहनेवालेकी अपेक्षा ज्यादा आगे बढ़ेगा। इसलिए गेहूँ का दलिया खानेवालेके लिए उन्नतिका जितना अवकाश है, फलाहारीको उसकी अपेक्षा अधिक है। किन्तु यहाँ भी मुख्य कारण मन है। अधिक महत्त्व हेतुका ही है।

हम जिसका फल लेते है उसके पत्ते, छाल आदि सभी कुछ ले सकते हैं, ऐसा अनुमान नहीं निकाला जा सकता; वह उचित नहीं होगा।

एकादशीके व्रतमें कुछ विशिष्ट हरी साग-भाजियाँ लेनकी छूट है, किन्तु गहूँ खानेका निषेध है-इसका कारण सूक्ष्म नहीं, स्थूल मालूम होता है। हरी भाजियोंसे पूरा पेट नहीं भरता और लोग उन्हें अनाज नहीं मानते इसलिए [व्रतके विधायकोंने] कुछ हरी भाजियोंकी छूट दे दी; किन्तु गेहूँका यह कहकर निषेध कर दिया कि वह अनाज है; और इस प्रकार उन्होंने एकादशीका व्रत पालनेके मूल हेतुको यानी अल्पाहारके हेतुको कायम रखा।

लौकी इत्यादि टमाटरोंकी ही की तरह एक प्रकारके फल है। टमाटरोंको आहारमें इसलिए रखा गया है कि वे बिना पकाये कच्चे खाये जा सकते है। लौकी आदि यदि कच्ची खाई जाये तो, पचेगी या नहीं इसमें शंका है। मूली आदि घासपातकी जड़ है और जड़-मूल खानेको जैन धर्ममें अत्यन्त दूषित माना गया है। बा अदरक खाना चाहती थी। उसका असर कैसा होगा, मैंने जानने के लिए उसके साथ अदरक खाया। मुझे उसका असर अच्छा जान पड़ा। इसलिए मैं उसे नीम [ के रस] के बाद लेता रहा। बा उत्साही है। उसे भी अच्छा लगा और मुझे भी अच्छा लगा। उसने कोमल अदरक इकट्ठा किया। वे तो जड़ें ही थीं। एक दो दिन मैंने उन्हें खाया और वे मुझे बहुत अच्छी लगीं। लेकिन आज सुबह मेरा मन दयासे द्रवीभूत हो गया और मुझे अपने ऊपर बड़ा तिरस्कार आया। ऐसा लगा, मानो मुझे इन अदरककी जड़ों में व्याप्त उनका जीव दिखाई पड़ रहा हो। अदरककी एक-एक गाँठपर कई छोटी-छोटी] कोमल जड़ें होती है। उन्हें खाना तो अनेक कोमल गर्भोका निपात करने-जैसा है। बहुत दुःखी हुआ और आजसे मैंने अदरक छोड़ दिया। मैंने अदरकका त्याग इससे पहले कभी नहीं किया था, आवश्यकता होनेपर उसके लेनकी छूट रखी थी। अब मैं उसे लेने में दोष मानूंगा और जहाँतक बनेगा नहीं लूंगा। जो बन्धन अपने लिए मैंने स्वीकार किये हैं भारत पहुँचनेके पहले अभी उनसे ज्यादा नहीं लेना चाहता; किन्तु अदरक तो मैं इस देशमें नहीं लूंगा।

आगपर पकाया हआ आहार लेनेसे जीवका कृत्रिम और इसलिए निर्दय नाश होता है। बिना पकाया हआ खानेसे जीवका स्वाभाविक नाश होता है। इसके सिवा पकाये हुए आहारमें से उसका पोषक तत्त्व नष्ट हो जाता है। इस तरह सोचें तो हम पके हुए फल ही खा सकते हैं, और कुछ नहीं। कच्चे फल तोड़ना और खाना