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आयोगको रिपोर्टके बारे में विचार


दोषयुक्त है। इससे तुम देख सकोगे कि मैंने जितना सोचा-विचारा है वह सब मैं आचरणमें नहीं उतार सका हूँ और उस सीमा तक मेरे रहन-सहनकी रीतिसे विचार कहीं आगे है। किन्तु यह तो होगा ही। विचारोंका अनुसरण करनेके लिए तीव्र प्रयत्न तो हमेशा करता रहता हूँ।

गरम-गरम खानेकी इच्छा होती रहती है, इसका कारण हमारी दीर्घकालीन कुटव है। उसे प्रयत्न करके दबाना ही चाहिए। अनुचित इच्छाएँ तो उठती ही रहेंगी। उनका हम ज्यों-ज्यों दमन करेंगे त्यों-त्यों दृढ़ बनेगे और हमारा आत्म-बल बढ़ेगा।

बा की तबीयत ऐसी ही चल रही है-न अच्छी, न बुरी। सूजन आज तो कुछ ज्यादा ही है; किन्तु वह हिम्मतसे चल-फिर रही है। मैंने उसे जो अच्छा लगे, खानके लिए कह दिया है। अब जो हो जाये सो ठीक। फिलहाल वह ऐसी बीमार नहीं है कि बिस्तरपर ही पड़ी रहे।

यहाँ मुझे अभी तीन हफ्ते और लग जायेंगे।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू. ५६९७) से। सौजन्य : नारणदास गांधी

२९५. आयोगकी रिपोर्ट के बारेमें विचार

[केप टाउन
मार्च १७, १९१४के बाद]'

आयोगने ट्रान्सवाल स्वर्ण-कानूनका उल्लेख नहीं किया है। निहित अधिकारोंको मान्यता दी जायेगी, ऐसी घोषणा आवश्यक है। मैं निहित अधिकारोंका अर्थ क्या मानता हूँ, सो पहले ही बता चुका हूँ।

प्रवासी अधिकारीको विशेष हिदायतें देकर उनपर वित्तीय धारा लागू करवाये बिना दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीय केपसे बाहर नहीं रखे जा सकते । सुझाव दिया गया है कि एक नई स्थिति पैदा होने अर्थात् दक्षिण आफ्रिकामें जन्में अपढ़ भारतीयोंका उपनिवेशमें अपरिमित प्रवेश होने तक ये हिदायतें अधिकारियोंको दे दी जायें।

इस (विवाहके) मुद्देपर आयोगकी रिपोर्ट में अस्पष्टता दिखाई देती है। (क) अधिवासी भारतीयोंकी एकाधिक पत्नियोंको अपने नाबालिग बच्चोंके साथ प्रवेश करने दिया जाये, चाहे उन्होंने उससे पहले दक्षिण आफ्रिकामें प्रवेश किया हो या न किया हो। ऐसे मामले बहुत थोड़े हैं। ऐसे सभी मामलोंकी सूचना एक निश्चित अवधिके भीतर संघके अधिकारियों अथवा प्रान्तीय अधिकारियोंको दे दी जाये।

१. सॉलोमन कमीशनकी रिपोर्ट विधान-सभाके विचारार्थ मार्च १७, १९१४ को प्रस्तुत की गई थी। रिपोर्ट के पाठके लिए देखिए परिशिष्ट २३।