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पत्र : मणिलाल गांधीको

अन्त में, मेरे इस शोकमें अपनी सहानुभूतिसे मुझे अभिभूत करनवाले अपने मित्रोंसे मैं अनुरोध करता है कि यदि निकट भविष्यमें सत्याग्रहके सब मुद्दे सन्तोषजनक रूपसे तय हो जाये तो वे भारत लौटनकी मेरी इच्छाकी पूर्तिमें मेरी सहायता करें ताकि मैं अपनी विधवा भाभीके चरण-स्पर्श कर सकूँ और अपने पिताके कुटुम्बकी पाँच विधवाओंकी पारिवारिक जिम्मेदारीका बोझ उठा सकूँ। मृत्युके हाथोंने अब हिन्दूपरम्पराके अनुसार इस परिवारके प्रधानपदकी जिम्मेदारी मेरे ऊपर डाल दी है।

आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-३-१९१४

२९७. पत्र : मणिलाल गांधीको

[केप टाउन]
गुरुवार [मार्च १९, १९१४]'

चि० मणिलाल,

खाकमें तुमने जो फेरफार किया है, बड़ा विचार करके ही किया होगा। ऐसा न करना कि जो शुरू करो उसे बादमें भूल जाओ और स्वप्नकी तरह उसकी केवल याद ही रह जाये। उसमें से कमसे-कम कुछ तो जीवन-भर टिकना चाहिए। तुमने इतना बड़ा फरफार किया है कि उस बार चौमासेके बाद तुम्हारी जैसी दशा हो गई थी शायद इस बार भी वैसी ही हो जाये। अधिक आहारसे बचनेका एक ही रास्ता है। अपनी खुराक पहलेसे ही निकाल लेना और अतिरिक्त भोजनके बर्तन अलग रख देना; और फिर खाना। बा ठीक है।

बापूके आशीर्वाद

श्री मणिलाल गांधी

बॉक्स २४९३

जोहानिसबर्ग

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजरातीमें लिखे पोस्टकार्ड (सी० डब्ल्यू.१०४) से।

सौजन्य : सुशीलाबेन गांधी।

१. यह तिथि डाकघरकी मुहरसे ली गई है