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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कुछ नहीं जानते। वे जो कहेंगे उसका भरोसा हमें करना पड़ेगा। बनी बनाई खाद्य वस्तुओंके विषयमें हिन्दुओं में जो रूढ़िगत विरोधका भाव है उसका जहाँतक बने पालन करना चाहिए। गुड़ केवल रस नहीं है, उसमें कोई क्षार या नमक मिलाया जाता है। इसके सिवा गन्ने के रसको पकाकर उसमें से केवल खाँड या गुड़ ही रखा जाताहै। आमके रसके साथ भी यदि ऐसा ही किया जाये तो वह भी उसी प्रकार अग्राह्य हो जायेगा। वायकी तकलीफके लिए यदि काली मिर्च या अदरकके साथ नीमके पत्ते दिये जायें तो लाभ होना सम्भव है। तुम कसरत काफी करते हो या नहीं? हठपूर्वक बहुत जल्दी उठनेकी जरूरत नहीं है।

उपवासके विषय में मैने रामदासको जो लिखा था वह तुमने पढ़ा या नहीं? न पढ़ा हो तो पत्र मांगकर पढ़ लेना। मैं लड़कोंको उपवास [के प्रयोग] करनेसे रोकना नहीं चाहता। लेकिन उपवास सोच-समझकर बुद्धिपूर्वक करना चाहिए।

मैं रास्ते में जोहानिसबर्ग के सिवा और कहाँ रुकूँगा, यह अभी निश्चित नहीं है। फार्ममें पड़े हुए अंगरखे मेरे हैं। मुझे नहीं लगता कि उनमें से कोई तुम्हें दिया जा सकता है। नये बनवाने पड़ेंगे। यह आसानीसे हो सकता है। नमूने के लिए मेरे अँगरखेका उपयोग करना।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू. ५६९९) से। सौजन्य : नारणदास गांधी।

३००. पत्र : मणिलाल गांधीको

[केप टाउन]
फाल्गुन वदी ११ [ मार्च २२, १९१४]

चि० मणिलाल,

तुम्हारे पत्र आते रहते हैं। मैं देखता हूँ कि तुम्हारा वहाँ जाना लाभकारी ही हुआ है। और यह भी अच्छा है कि तुम वहाँ अकेले हो। फेरफार करने में तुम बहुत उतावली करते हो। चाहूँगा कि इनमें से कुछ तो टिके रहें। वहाँ तुम्हारा [दैनिक] जीवन नियमित हो जाये तो भी बहुत हुआ मानूंगा। मुझे तो यही लगता है कि तुम्हारा मेरे साथ चले-चलना ज्यादा अच्छा है। स्टीमरमें हम २० आदमी हो जायेगे, इससे कोई असुविधा नहीं होगी। मेरा खयाल है कि स्वदेश पहुँचनेपर फिलहाल तो जेकी बेन मेरे साथ नहीं रह सकेगी। मेरी इच्छा है कि देशमें तुम उच्च कोटिके ब्रह्मचारी माने जाओ और तुम्हारे व्यवहारमें ऐसा स्वाभाविक संयम दिखाई पड़े कि उसकी छाप दूसरोंपर पड़े बिना न रहे। इसके लिए तुममें परिश्रम और

१. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।