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पत्रका अंश


अध्ययनकी वृत्ति होनी चाहिए और तुम्हारा चित्त निर्मल होना चाहिए। केवल दूसरोंपर छाप डालने, उन्हें प्रभावित करनेकी इच्छासे किये गये कार्यकी कोई छाप नहीं पड़ती। छाप ऐसे कार्योंकी ही पड़ती है जो हमें सचमुच प्रिय हों और जो श्रेयस्कर भी हों। इसलिए तुम्हें क्या करना है, इसका विचार अपनी रुचिका खयाल करते हुए तुम्हें ही करना चाहिए और फिर उससे आमरण चिपटे रहना चाहिए।

चिरंजीव हरिलालका पत्र पढ़नेके लिए तुम्हारे पास भेज रहा है। उसकी दशा कैसी दयनीय हो गई है, इसका विचार करना। इसमें दोष उसका नहीं, मेरा है। उसके बचपन में मेरे रहन-सहन में संयमका अभाव था; उसके चित्तपर उसीकी छाप रह गई है। पत्र पढ़कर फाड़ देना।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती (सी० डब्ल्यू० १०३) से। सौजन्य : सुशीलाबेन गांधी।

३०१. पत्रका अंश

[केप टाउन]
रविवार [मार्च २२, १९१४]'

आत्माके सिवा बाकी सब क्षणभंगुर है। प्रतिक्षण हमें न केवल इसका विचार करते रहना चाहिए; उसके अनुरूप कार्यमें सदा रत भी रहना चाहिए। ज्यों-ज्यों विचार करता हूँ त्यों-त्यों में सत्य और ब्रह्मचर्यकी महिमा अधिकाधिक महसूस कर रहा हूँ। ब्रह्मचर्य और नीतिके सब सिद्धान्तोंका समावेश सत्यमें हो जाता है। तब भी मुझे लगता है, ब्रह्मचर्य इतना महत्वपूर्ण है कि उसे सत्यकी बराबरीका आसन दिया जा सकता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि इन दोनोंके द्वारा किसी भी कठिनाईपर विजय पाई जा सकती है। वास्तविक कठिनाइयाँ तो हमारे मनोविकारोंकी है। यदि हम सुखके लिए बाह्य सम्बन्धोंपर बिलकुल निर्भर न रहें तो लोग क्या कहेंगे, इसके बजाय हम इसी बातका विचार करेंगे कि हमें क्या करना चाहिए।

[गुजरातीसे]
गांधीजीनी साधना और जीवन प्रभात

१. मूलमें यह पत्र १९१४ का माना गया है, लेकिन उसकी ठीक तिथिका पता नहीं लगता। किन्तु जान पड़ता है कि यह और मणिलाल गांधीको लिखित पत्र (देखिए पिछला शोर्षक) लगभग साथ ही लिखे गये होंगे।