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आयोगकी रिपोर्ट और सिफारिश


परवाह न करते हुए, कर्त्तव्य मानकर अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रहनेका जो पवित्र कार्य कर दिखाया, उसमें से दूसरे सुन्दर और सरस फल भी हमें अनायास ही प्राप्त हो गये। ऐसी है सत्यकी महिमा, ऐसा है सत्याग्रहका प्रताप! जो ईश्वरसे डर कर चलता है उसे मनुष्यसे डर रखने की कोई जरूरत नहीं, यह बात करोड़ों बार सिद्ध हो चुकी है।

आयोगकी रिपोर्ट देखनेसे भी ऐसा ही सिद्ध होता है। तीन-पौंडी कर तथा विवाहके सम्बन्धमें हमारी ओर से बहुत कम गवाहियाँ दी गई। किन्सु, ये दोनों बातें हमारी लड़ाईका मुख्य हेतु थीं और उनके सम्बन्धमें आयोगने जो सिफारिशें की हैं, उनसे अच्छी सिफारिशें हमारे लाख गवाहियाँ देनेपर भी नहीं की जा सकती थीं। यदि हमने तीन-पौंडी करके विषयमें गवाहियाँ दी होतीं तो, हमें लगता है, यह भी हो सकता था कि आयोगने इस करकी जितनी कड़ी आलोचना की उतनी कड़ी आलोचना वह नहीं करता। जिन बातोंके सम्बन्धमें भारतीयोंने नासमझी अथवा अज्ञानवश गवाहियाँ दीं, उन बातोंके सम्बन्धमें समाजको कुछ खोना ही पड़ा है। एक भारतीयने यह शहादत दी कि उसे पीटा गया, किन्तु उसकी शहादतको आयोगने बिलकुल उड़ा ही दिया है। प्रवासी कानूनके सम्बन्धमें जो गवाहियाँ दी गई, वे इतनी कमजोर थीं कि श्री पोलक द्वारा सर बेंजामिनको भेजे गये जोरदार नोटके असरपर भी पानी फिर गया और आयोगके सामने जो कमजोर गवाहियाँ दी गई है उनका परिणाम यही हुआ है कि लोगोंके हाथों में झुनझुने थमा कर उन्हें बहला दिया गया है। जिन छोटी-छोटी बातोंके सम्बन्धमें समाज किसी भी समय- चाहे वह समझौता हो जाने के बाद होता या समझौतेकी रूसे ही - राहत पा सकता था, उन्हीं बातोंके सम्बन्धमें उसने आयोगको आलोचना करनेका अवसर देकर अपना ओछापन सिद्ध किया। अब एक-दो उदाहरण लीजिए। आयोगने एक-साला प्रमाणपत्रोंके बदले तीन-साला प्रमाणपत्र जारी करनेकी सिफारिश की है। सच तो यह है कि हम [अधिवासके] स्थायी प्रमाणपत्र पानेके हकदार है, और हमने सर बेंजामिनसे यही मांग की थी। आयोगसे तीनसाला प्रमाणपत्रकी मांग करने के कारण हमारी स्थायी प्रमाणपत्रकी मांग दब गई। व्यापारिक परवानोंके बारेमें आयोगके सामने दी गई बेसिर-परकी गवाहियोंका परिणाम यह हुआ कि उसने इस सवालको बिलकुल उड़ा ही दिया। गवाहियां देनेवाले लोगोंने ट्रान्सवालके स्वर्ण-कानूनके साथ और भी सवाल जोड़ दिये, जिससे आयोगने इसे भी किनारे कर दिया। इस प्रकार जिन बातोंके सम्बन्धमें गवाहियाँ दी गई हैं, उनमें तो हमें बहुत कमपर ही सन्तोष करना पड़ेगा। समाजको स्मरण होगा कि उपर्युक्त सारी बातोंका समावेश श्री काछलियाके पत्रकी पाँचवीं मांगमें हो जाता था। उसमें सभी मौजूदा कानूनोंके वाजिब अमलकी मांग की गई थी। यदि यह मांग न होती तो जो गवाहियाँ दी गईवे भी न दी गई होतीं। अत:, जिन भाइयोंने उतावलीमें बिना कोई विचार किये गवाहियाँ दे दी, उन्होंने यदि ऐसा नहीं किया होता तो जो बात तीन-पौंडी कर आदि प्रश्नोंके सम्बन्धमें हुई, वही पांचवीं मांगके बारेमें भी होती।

१. देखिए “पत्र : गृह-सचिवको", पृष्ठ १७७-८० ।