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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


फिर भी, उनकी गवाहियोंसे कोई स्थायी हानि नहीं हुई है, क्योंकि पांचवीं माँग तो हमेशाकी मांग है। यदि सरकारने वैसा आश्वासन दे दिया और उसे देना ही पड़ेगा-तो समाज स्वर्ण-कानून, व्यापारिक परवाना कानून आदिके अमलका प्रश्न औचित्यके साथ उठा सकेगा। और ऐसा प्रबन्ध किया जा रहा है कि उस प्रश्नको उठाया जा सके। हमारे प्रश्नके सम्बन्धमें आयोगकी रिपोर्ट कोई ब्रह्म-वाक्य नहीं है। जिस हदतक वह रिपोर्ट हमारे विरुद्ध है, उस हदतक सत्याग्रही उससे बँधे हुए नहीं है। और यदि समाजके कुछ लोगोंने अज्ञानवश उल्टी-सीधी गवाहियाँ दे दी तो उससे समाजकी कोई हानि नहीं हो सकती, बशर्ते कि वह यह समझ ले कि उसका इलाज उसके ही हाथोंमें है।

आयोगकी रिपोर्टमें बताया गया है कि सत्याग्रह संघर्ष सर्वथा उचित था; वचनभंगके बारेमें हमने जो आरोप लगाया वह सही था; और हमारी सारी माँगें वाजिब थीं। इस परिणामको कोई ऐसा-वैसा परिणाम नहीं माना जा सकता, और हम तो मानते है कि इस बातसे कोई इनकार नहीं कर सकता कि यह सब सत्याग्रहका ही प्रबल प्रताप है।

यदि सरकारने विवाहके सम्बन्धमें आयोगकी सिफारिश स्वीकार कर ली तो परिणाम निम्न प्रकार आयेंगे: ।

(१) जिस व्यक्तिके एकाधिक पत्तियाँ हों, उसकी एक पत्नीको और उस पत्नीसे उत्पन्न उसके नाबालिग बच्चोंको कानूनी तौरपर प्रवेशका अधिकार होगा।

(२) यदि कोई व्यक्ति अपने एकपत्नीक विवाहको कानुनी मान्यता दिलाना चाहे तो वह दिला सकेगा, और तदर्थ नियुक्त मौलवी अथवा ब्राह्मणके सामने या विवाहअधिकारीके सामने उसका पंजीयन करा सकेगा।

(३) जो व्यक्ति अपने एकपत्नीक विवाहको कानूनी मान्यता दिलाना चाहेगा, वह अपने विवाहका पंजीयन करा कर कानूनी मान्यताका प्रमाणपत्र ले सकेगा और फिर उसकी पत्नीको उतने ही अधिकार प्राप्त होंगे जितने कि किसी यूरोपीय पत्नीको।

(४) नये विवाहोंके लिए मुल्ला अथवा ब्राह्मण विवाह-अधिकारी नियुक्त करनेकी व्यवस्था की जायगी।

(५) जिस व्यक्तिके एकाधिक पत्नियां है, वह उन्हें और उनसे उत्पन्न नाबालिग बच्चोंको साथमें ला सकेगा। किन्तु, उन्हें कोई कानूनी हक नहीं मिलेगा।

(६) जिस व्यक्तिका एकपत्नीक विवाह कानूनके अनुसार हो गया हो, वह भी अपने धर्मके अनुसार दूसरा विवाह कर सकेगा। किन्तु, दूसरी पत्नीको कानून-सम्मत नहीं माना जायेगा।

(७) कोई भी भारतीय इनमें से कोई कदम उठाने के लिए बँधा हुआ नहीं है, और न इस कारण वह अपनी पत्नीके अधिकार ही खोयेगा कि उसने वैसा नहीं किया।

हमारा खयाल है, इससे कुछ अधिक न हमने माँगा था और न माँग ही सकते हैं। अन्तमें विवाह तथा तीन-पौंडी करके सम्बन्धमें कानून बनने के साथ-साथ सरकारकी ओरसे केप, फ्री स्टेट तथा मौजूदा कानूनोंके अमलके बारेमें भी निश्चयपूर्वक समाधान होना चाहिए, और जब यह सब हो जायेगा तभी गत आठ वर्षोंसे चल रहे इस महासमरका