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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बारेमें चर्चा करते समय यही सम्बोधन इस्तेमाल करते रहे हैं। श्री ऐंड्रयूजने मुझे यह भी बतलाया था कि आपका, गुरुदेवका' और श्री रुद्रका' उनपर कितना अधिक प्रभाव पड़ा है। उनसे मुझे पता चला कि आपके शिष्योंने सत्याग्रहियोंके लिए कितना काम किया था। उन्होंने गुरुकुलके जीवनके इतने सुन्दर शब्द-चित्र खींचे थे कि यह पत्र लिखते समय लगता है, जैसे मैं गुरुकुलमें ही पहुंच गया हूँ। श्री ऐंड्रयूजने मेरे मनमें उक्त तीनों स्थानोंको देखने और इन संस्थाओंकेप्रधान, भारतके तीन महान् सुपुत्रोंके प्रति सम्मान प्रकट करनेकी उत्कट अभिलाषा जगा दी है।

आपका
मोहनदास क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० २२०४) की फोटो-नकलसे।

३०५. पत्र: गो० कृ० गोखलेको

फीनिक्स
नेटाल
अप्रैल १, १९१४

प्रिय श्री गोखले,

मुझे आपके दो तार मिले। फिलहाल मैं बादवाले तारका जवाब दे रहा हूँ। मुझे इसमें सन्देह है कि श्रीमती गांधी समझौता होने तक जीवित रहेंगी। मैं यह पत्र उनके पलंगके पास बैठा लिख रहा हूँ। स्वयं मुझे उनका डॉक्टर, नर्स और सब कुछ होना पड़ा है। फिर मेरे भाईको मृत्युसे पांच विधवाओं और उनके बच्चोंकी पूरी जिम्मेदारी मुझपर आ गई है। डॉ० मेहता अभी अन्य लोगोंका खर्च दे रहे हैं। मुझे इसमें संदेह नहीं कि इसमें वे मेरे भाईकी विधवाका खर्च भी जोड़ देंगे। परन्तु स्वाभाविक है कि वे और अन्य लोग मुझे यथासम्भव शीघ्र अपने साथ देखनेको उत्सुक हैं। अतएव आप इसे नितान्त आवश्यक ही न समझें तो मैं लन्दन जाने में हिचकिचाऊँगा। यदि आप आवश्यक समझते है तो श्रीमती गांधीके देहावसान होने या उनकी तबीयत थोड़ी सुधरनेपर मैं अवश्य आऊँगा; कहनेका अर्थ यह है कि कमसे-कम दो महीनेके लिए उनसे दूर रहना तभी सम्भव होगा।

मैं आपको पहले ही सूचित कर चुका हूँ कि भारतीय कानूनपर २२ तारीखको संघ-संसदके फिर शुरू होनेसे पूर्व विचार नहीं होगा।

मुझे पूरी आशा है कि आपको विशीमें इलाजसे वास्तविक लाभ होगा।

१. रवीन्द्रनाथ टैगोर ।

२. सुशील कुमार रुद्र, प्रिंसिपल, सेण्ट स्टीफेन्स कॉलेज, दिल्ली (१९०९-२३)।