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पत्र : मणिलाल गांधीको

मैं जानता हूँ कि आपसे मेरे या मेरे भविष्यके बारेमें चिन्ता न करनेकी प्रार्थना करना व्यर्थ है। मैं भारतमें चाहे जहाँ रहूँ, हमारे बीच जो समझौता हुआ है उसपर कायम रहूँगा; यानी मुझे भारत पहुँचने के बाद एक साल तक दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नके अलावा बिलकुल चुप रहना है। अन्य बातोंके बारेमें भी मैं वादा कर चुका हूँ।

आपका विश्वस्त,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३७७५) की फोटो-नकलसे।

३०६. पत्र: मणिलाल गांधीको

[फीनिक्स
नेटाल]
चैत्र सुदी ८, १९७० [अप्रैल ३, १९१४]

चि० मणिलाल,

तुमने जो फेरफार किया है वह बहुत अच्छा है। दृढ़तापूर्वक उसका पालन करते रहोगे तो वह तुम्हारे लिए बहुत कल्याणकारी सिद्ध होगा। प्रातःकाल उठनेकी महिमा बहुत सुनी है। अप्रैलकी पहली [तारीख ] से क्यों डरते हो? चैत्र शुक्ल ५ तो पर्वकी पंचमी मानी जाती है। अर्थात् तुमने उक्त परिवर्तनके लिए एक शुभ दिन चुना है। और आखिरकार अपनेको मूर्ख तो हम स्वयं ही बना सकते हैं। यदि हम तेजस्वी हों तो किसी दूसरे में ऐसी शक्ति नहीं है कि वह हमें मूर्ख बना सके।

सुबहका समय बहुत उपयोगी कार्योंमें लगाना। उस समय गणितके सवाल जरा जमकर कर लिया करो तो भी काफी होगा। और अधिक मैं बादमें बताऊँगा। तुम्हें किताबें भेज रहा हूँ। संस्कृतको खूब पक्का कर डालना।

बा गेहूँके आटेकी काफी, दूधके बिना, ले रही है। इसके सिवा वह और कुछ नहीं लेती। चलने-फिरने में असमर्थ है। लगता है, सूजन उतर जायेगी। कहना कठिन है कि क्या परिणाम होगा।

बापाके पत्रका क्या किया? उनके बारे में अंग्रेजी में कुछ लिखा था, उसका क्या हुआ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ९५) से। सौजन्य : सुशीलाबेन गांधी।