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३०७. विवाह-सम्बन्धी एक घोषणा

संघ-सरकारके २४ मार्चके गज़टमें एक विवाह-सम्बन्धी घोषणा निकली है जो महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय विवाहोंके प्रश्नपर जो कानून बन रहा है उसपर इसका प्रभाव पड़ता है। हम घोषणाका पाठ अन्यत्र छाप रहे है। इस घोषणाके अनुसार वर्तमान नेटाल कानूनके अन्तर्गत प्रस्तावित मुसलमानी तथा यहूदी विवाहोंकी पूर्व-सूचनाका प्रकाशन आवश्यक होगा। यदि अमली तौरपर घोषणाका मतलब केवल यहूदी विवाहोंसे हो तो हमें कुछ नहीं कहना है। परन्तु यदि यह घोषणा भावी भारतीय विवाह कानूनका पूर्वाभास है और लोगोंकी प्रतिक्रिया जाननेके लिए प्रकाशित किया गया है तो यह अनिष्टका सूचक है। क्योंकि भारतीय प्रस्तावका सार तो यह है कि भारतके महान धर्मोंमें विवाहकी जो धार्मिक विधियाँ निर्दिष्ट की गई है उनके अनुसार सम्पन्न विवाहोंको दक्षिण आफ्रिकाके कानून में मान्यता मिलनी चाहिए, बशर्ते कि वे एकपत्नीक हों। भारतीय धर्मों में सगाईकी पूर्व-सूचनाके प्रकाशनकी आवश्यकता नहीं मानी जाती। भावी विवाहको व्यापक रूपमें विज्ञापित करनेका हमारा अपना ढंग है (जो हमारी रायमें विवाहकी पूर्व-सूचनाके प्रकाशनसे कहीं श्रेष्ठ है)। यदि विवाहके विरुद्ध धार्मिक प्रथा या काननकी दृष्टिसे कोई आपत्ति हो तो कोई प्रतिष्ठित भारतीय पुरोहित विवाह नहीं करायेगा। और स्वयं जाति या बिरादरीका रुख आचार-सम्बन्धी नियमोल्लंघनके मामलोंमें बहत सख्त होता है। यद्यपि हम एकपत्नीत्वके विषय में दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयोंकी भावनाको ठेस नहीं पहुँचाना चाहते किन्तु हम अपने धार्मिक सिद्धान्तोंको रत्ती-भर भी छोड़नेका इरादा नहीं रखते। हम प्रस्तावित कानून प्रकाशित होने से पहले ही यह चेतावनी दे देना उचित समझते हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-४-१९१४

३०८. पत्र : ई० एम० जॉर्जेसको

[फीनिक्स
नेटाल]
अप्रैल ८, १९१४ प्रिय श्री जॉर्जेस,

मैं आपका ध्यान निम्नलिखित बातकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। श्री पोलकने आपके पास कुछ अस्थायी प्रमाणपत्र भेजे थे, जो १९११ के अस्थायी समझौतेके अनुसार ट्रान्सवालमें बसनेकी अनुमति प्राप्त शिक्षित भारतीयोंको दिये गये थे। उनके बदलेमें आपको १९१३ के प्रवासी विनियमन अधिनियमके अनुसार स्थायी प्रमाणपत्र भेजने थे। मुझे मालूम हुआ है कि श्री चैमनेने लिखा है कि अभी स्थायी प्रमाणपत्र