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भाषण : मायावरम्के स्वागत समारोहमें

तभी मैं समझँगा कि [ स्वदेशी ] कार्यक्रमको आप कुछ हद तक निभा रहे हैं - पूरा कर रहे हैं; और केवल तभी मुझे लगेगा कि मुझे स्वदेशीकी शिक्षा दी जा रही है। जब हम मायावरम्से गुजर रहे थे तब मैंने पूछा कि क्या यहाँ हाथ-करघे चलते हैं और क्या यहाँ हाथ करघोंपर बुनाई करनेवाले जुलाहे भी हैं ? मुझे बताया गया कि मायावरम्में ५० हाथ-करघे हैं। मैंने पूछा, वे क्या बुनते हैं? मालूम हुआ वे मुख्यतः हमारी बह्नोंके लिए साड़ियाँ तैयार करते हैं? तब क्या स्वदेशीको केवल महिलाओं तक ही सीमित रखा जायेगा ? क्या यह केवल उन्हींके लिए है ? हमारा पुरुषवर्ग इन हाथ-करघोंपर, इन्हीं जुलाहोंसे अपने कपड़े तैयार नहीं करवाता [एक आवाज : यहाँ एक हजार हाथ- करघे हैं]। आप कहते हैं, यहाँ एक हजार करघे हैं। नेताओंका इसके बावजूद पुरुषोंके कपड़ोंकी व्यवस्था न कराना तो और भी बुरा है। (जोरकी करतल ध्वनि) यदि इन हजार करघोंसे सिर्फ स्त्रियोंकी आवश्यकताओंकी पूर्ति होती है तो आप दुगुने करघोंकी व्यवस्था कर दीजिए। तब कपड़ोंकी आपकी जरूरत स्वयं आपके जुलाहोंसे पूरी हो जायेगी और यहाँकी गरीबी खत्म हो जायेगी। मैं आपसे पूछता हूँ और अपने मित्र, अध्यक्ष महोदयसे पूछता हूँ कि आप अपनी पोशाकके लिए किस हदतक विदेशोंके ऋणी हैं। अगर वे मुझे यह बता दें कि बहुत प्रयत्न किया; किन्तु फिर भी अपनी पोशाकके लिए स्वदेशी वस्त्र मुहैया नहीं कर सके और इसीलिए उन्हें विदेशी वस्त्र पहनने पड़ते हैं तब तो मैं उनका शिष्य बननेको तैयार हूँ। मेरा तो यह अनुभव है कि बिना किसी अतिरिक्त व्ययके अपने लिए स्वदेशी पोशाक बनवा लेना मेरे लिए सर्वथा सम्भव है। तब फिर जो लोग कांग्रेसमें स्वदेशीका प्रस्ताव पेश करते हैं या उसे पेश करनेवाले माने जाते हैं, उनसे मैं स्वदेशीके रहस्यको कैसे समझू? मैं अपने नेताओं और मायावरम्‌के निवासियोंके चरणों में बैठकर कहता हूँ कि वे इस रहस्यका उद्घाटन करें, इसका भेद स्पष्ट करें, मुझे सिखायें कि में किस प्रकारका व्यवहार करूँ, वे मुझे समझाएँ कि क्या स्वदेशीका यही अर्थ है, क्या यही राष्ट्रीय आन्दोलनका अंग है कि मैं उन लोगोंकी, जो बेघर-बार हैं, जो अन्न और पानीके लिए चीख रहे हैं, प्रार्थनाएँ अस्वीकार कर दूं और उन्हें भगा दूं? यहाँ उपस्थित मित्रोंसे भी मैं ये ही प्रश्न करता हूँ। चूंकि कुछ ऐसी बातें कह रहा हूँ जो आपके विरुद्ध जाती हैं इसलिए मुझे यह आशंका हो रही हैं कि कदाचित् मैं विद्यार्थी-वर्गका प्रेम-भाव और अपने नेताओंका आशीर्वाद खो दूंगा। किन्तु मेरी प्रार्थना है कि आप विशाल हृदय बनें और अपने मनके एक कोनेमें मुझे भी स्थान दें। मैं उस कोनेमें निवास करनेका प्रयत्न करूंगा। यदि आप मुझे ज्ञान दें, शिक्षा देनेकी कृपा करें; मैं आपके द्वारा बताई हुई बातोंको बड़े विनीत भाव और पूरे मनोयोगसे सीखूंगा। मैं आपसे इसकी प्रार्थना और याचना कर रहा हूँ। किन्तु यदि आप मुझे अपनी बातोंका रहस्य नहीं समझा सके तो मैं पुनः आपसे और नेताओंसे अपना विरोध घोषित कर दूंगा। (देर तक हर्ष-ध्वनि)

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, ३-५-१९१५