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७१. पत्र : नारणदास गांधीको

वैशाख बदी ५ [ मई ४, १९१५ ]

चि० नारणदास,

लगता है, मैं वहाँ १० या १ को पहुँचूँगा। जहाँ तक मेरा खयाल है, जमनादास संस्थाका सदस्य बन गया था; हो सकता है, मैंने गलत समझा हो । जमनादासका कहना है कि उसने कोई व्रत नहीं लिया। जिसने व्रत न लिया हो, वह सदस्य नहीं माना जा सकता, केवल छात्र रूपमें रह सकता है। विद्यार्थीको भी संस्थामें रहने तक तो व्रतका पालन करना ही पड़ेगा । सदस्योंको आजीवन व्रतका पालन करना चाहिए । जमनादास बाहर रह कर संस्थाके नियमोंका पालन करना चाहता है। मुझे लगता है कि उसके मनपर हरिलालके पत्रका प्रभाव हुआ है और उसके आक्षेपोंसे उसे दुःख हुआ है।

मूंगफली और खजूर खानेसे हममें से अधिकतर लोगोंको कोई नुकसान नहीं हुआ। एक दिनमें पाँचसे ज्यादा चीजें न खानेसे हमारा अहिंसाव्रत दृढ़ होता है, क्योंकि इससे उनको छोड़कर बाकी वनस्पति जीवोंको भी हम उस दिन अभय दान देते हैं । इससे अस्वाद व्रतका पालन भी अधिक होगा, क्योंकि पाँचसे अधिक चीजोंका स्वाद नहीं लिया जा सकेगा। अस्तेय व्रतका पालन भी होगा। क्योंकि यदि पाँच चीजोंसे सत्व ग्रहण कर लिया तो इच्छा करने पर भी अधिक न खाया जायेगा और खर्च कम होगा। मूंगफली पाक लेनेसे पहले मुझे सोचना पड़ेगा । तीन चीजें तो उसीमें हो जायेंगी; तो फिर उनके अतिरिक्त लेनेको दो ही चीजें बच रहेंगी। इलायची आदि भी चीजोंमें गिनूंगा। यह व्रत बहुत कठिन है, किन्तु मुझे उसका अभ्यास होता जा रहा है। अभी मन कुत्ता है, इसलिए पाँच चीजोंसे भी अधिक चीजोंका स्वाद लेनेके लिए भाग-दौड़ करता है। अधिक मिलनेपर पूछना । बम्बईमें जितना बन सका उतना कम रहूँगा। मनमें अहमदाबादके मामलोंको निबटानेकी ही बात चलती रहती है।

मेरे आनेकी तारीख माधवजीको बता देना।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६७०) से । सौजन्य : नारणदास गांधी

१. पत्र में दिनमें पाँच ही चीजें खानेके व्रतका उल्लेख है । यह व्रत गांधीजीने हरद्वारमें ९ अप्रैल १९१५ को लिया था।

२. कस्तूरबाके भाई ।