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७२. भाषण : नलौरमें

मई ५, १९१५

सभापति महोदय और मित्रो, मैं आपको भाषण देकर कष्ट नहीं देना चाहता हूँ। आज सुबह श्रीमती बेसेंटने वाग्विदग्धतापूर्ण ढंगसे और श्री शास्त्रियरने अपने बेजोड़, कठोर, पैने और निष्पक्ष तर्कसे व्यक्तिकी जिस स्वतन्त्रताका समर्थन किया है। उस स्वतन्त्रताकी मुझे भी बहुत लगन है। आपकी स्वतन्त्रताकी रक्षाके लिए मैं इतना उत्सुक था कि मैंने तो एक योजना ही बना डाली थी; दुर्भाग्यसे वह सफल नहीं हुई। स्वागत-समितिके माननीय सभापति महोदय और वर्तमान सम्मेलनके अध्यक्ष मेरी बातसे सहमत नहीं हुए। मैं यह सुझाव उनके सामने रखना चाहता था कि भावी कांग्रेस सभाओंमें और भावी सम्मेलनोंमें वे अपने भाषण पढ़ें नहीं बल्कि हम लोगोंके पढ़नेके लिए उसे बाँट दिया करें और इस तरह एक नया रास्ता दिखायें ।

संयोगवश यह प्रस्ताव ऐसे दो प्रस्तावोंके बाद पेश किया गया है जिनमें से एक तो मेरे पूज्य गुरु श्री गोखलेके सम्बन्धमें था और दूसरा था महामना वाइसरॉयके सम्बन्धमें, जिनकी अभी-अभी सर्वथा उचित प्रशंसा की गई है। दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले आपके देशभाइयोंकी ओरसे महामना वाइसरॉयकी कृपाके लिए मैं उनके प्रति आभार प्रकट करता हूँ । महोदय, यहाँ और इसके पहले दूसरे अनेक स्थानोंपर हमारे बारेमें जो कुछ भी कहा गया है उसपर मैंने हर बार यही कहा है और फिर यही कहना चाहता हूँ कि यदि हम किसी भी प्रकार प्रशंसाके पात्र हैं तो उसका श्रेय भारत ही को जाता है। हमारा प्रेरणा स्रोत तो भारतीय ही रहा है - अर्थात् श्री गोखले । उनका जीवन, उनके शब्द, उनकी कार्यप्रणाली और उनका सन्देश सदैव मेरा पथ-प्रदर्शन करते रहे हैं। और आज भी मेरे लिए उनका महत्त्व बना हुआ है। यदि हम उनके जीवनसे

१. २१ वें मद्रास प्रान्तीय सम्मलनमें ।

२. श्रीमती बेसेंटने श्री नटेसनके प्रस्तावका समर्थन करते हुए कहा था कि दक्षिण आफ्रिकी संघर्षका सफलतापूर्ण अन्त भारत भूमिमें स्वतन्त्रता-संघर्षकी सफलताका पूर्वचिह्न है । जो कुछ उन्होंने किया हम सिर्फ उसीके लिए धन्यवाद नहीं देना चाहते पर इसलिए भी कि उनके कामते भविष्य में भारतीय राष्ट्रको और बल मिलेगा । [सार्वजनिक जीवनमें ] श्री गांधीका यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान है कि इन्होंने हमें एक महान् उद्देश्यके एकाग्र अनुगमनकी दिशामें आत्म-त्यागकी प्रेरणा दी और हम लोग यह बात मानने लगे कि सत्य और न्यायके लिए किसी भी प्रकारके कष्ट-सहनसे कोई अपमान नहीं होता; यहाँतक कि यदि व्यक्तिकी आत्मा मुक्त है तो जेल जाना भी अपमानजनक नहीं है - बल्कि वह उस आन्तरिक स्वतन्त्रताका मूल्य ही है।

३. माननीय बी० एन० शर्माकी अध्यक्षतामें।

४. जी० ए० नटेसन द्वारा पेश किये गये इस प्रस्ताव में "श्री और श्रीमती गांधीके महान् बलि दोनों के लिए हार्दिक कृतज्ञता " प्रकट की गई थी।