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रतनसी सोढाको लिखे पत्रका अंश

पहले भारतीय पत्रकारों और भारतके लोकसेवी राजनयिकोंसे सानुरोध प्रार्थना की थी कि वे उन्हें कोई ऐसा सम्मानजनक समाधान प्राप्त करनेमें सहायता दें जिससे भारतकी प्रतिष्ठा बनी रहे और साथ ही स्वशासित उपनिवेशोंको कोई परेशानी भी न हो। लॉर्ड हार्डिज़ अभीतक उत्तरकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। कांग्रेसने ऐसा कोई उत्तर नहीं दिया है और न वह दे ही सकती है। यह उत्तर तो साम्राज्य-नागरिक संघ (इम्पीरियल सिटिजनशिप एसोसिएशन) सरीखी विशेषज्ञ, यदि उनके लिए मुझे इस शब्दके प्रयोगकी अनुमति दें तो, संस्थाएँ ही दे सकती हैं। कांग्रेसने उनको रास्ता दिखा दिया है। अब उन्हें परस्पर विरोधी दावोंकी जाँच करके निर्णय करना और लॉर्ड हार्डिज़को समझौतेका एक मोटा आधार देना उनका काम है। अवश्य ही यह समझौता ऐसा होना चाहिए जिससे उपनिवेशी सरकारें सन्तुष्ट हो सकें और इस प्रस्तावमें दी गई उचित माँगोंकी कोई क्षति न हो। इतना कहते हुए में इस प्रस्तावको प्रस्तुत करता हूँ (जोरकी तालियाँ)।

[अंग्रेजीसे]
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके तेरहवें अधिवेशन (बम्बईकी) रिपोर्टसे; पृष्ठ ६२-४
 

१४७. रतनसी सोढाको लिखे पत्रका अंश[१]

[१९१५][२]

राजकोट पत्र लिखकर चि० रेवाको[३]मुझे सौंप दो। किन्तु मुझे तुमसे ऐसा करनेकी आशा नहीं है। क्योंकि मेरा खयाल है कि जहाँ कुछ बातोंमें तुम मजबूत हो, वहाँ कुछ बातोंमें बहुत ही कमजोर हो।

छोटूके[४]लिए सूट भेजनेकी बिलकुल जरूरत नहीं है। जिन कपड़ोंकी जरूरत होती है, मैं यहीं बनवाता हूँ। यदि तुम कुछ रुपया बचा सको तो छोटूके लिए भेजना।

मोहनदासके यथायोग्य

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३४२०) से।

सौजन्य: रेवाशंकर सोढा

 
  1. १. पत्रका केवल अन्तिम पृष्ठ ही उपलब्ध है।
  2. २. पत्र १९१५ में लिखा गया जान पड़ता है। निश्चित तिथि निर्धारित नहीं की जा सकती।
  3. ३. रतनसीका पुत्र रेवाशंकर।
  4. ४. रतनसीका दूसरा पुत्र।