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डायरी: १९९५

अगस्त १, रविवार

पंडितजीने वेतनकी माँग की। जुलाई महीनेसे लेकर दिसम्बर तक उनको २० रुपये प्रतिमास देना निश्चित किया। इसके बदले वे तीन घंटे देंगे और शारदाबेन ढाई घंटे, ऐसा निश्चित हुआ। महिलाएँ पूंजाभाईके यहाँ गईं। प्रोफेसर स्वामी नारायण आये हुए थे। मंगल भाग गया।

अगस्त २, सोमवार

जमनादास आया। हरिलाल और त्रंबकलालने आश्रम में रहना शुरू किया।

अगस्त ३, मंगलवार

मनसुखलाल आया। पूंजाभाई तथा एक और यहीं सोये। अदा बीमार पड़ गये। जान पड़ता है, कसौटीमें ठीक नहीं उतरे। बादमें सम्हल गये।

अगस्त ४, बुधवार

कृष्णराव आये। मनसुखलालने प्राकृतिक उपचार आरम्भ किया।

अगस्त ५, बृहस्पतिवार

जमनादास सूरत गया।

अगस्त ६, शुक्रवार

कृष्णरावने आश्रम छोड़ा। शिवरामन आया।

अगस्त ७, शनिवार

बाबू अथवा माधवन् आया। जेठालाल और उसका भाई पुरुषोत्तम आये।

अगस्त ८, रविवार

अमरसिंह आया। जीवनलालभाई, मोतीलाल सेठ आदिसे उनके घर मुलाकात। विक्रम-सिंह अपने पुत्रको लेकर आया।

अगस्त ९, सोमवार

अमरसिंह गया। सर सुब्रह्मण्यम्की ओरसे १०० रुपये प्राप्त हुए। पंडित दस दिनके लिए गया।

अगस्त १०, मंगलवार

एक बार फिर कुछ गम्भीरताके साथ तमिल पढ़ना आरम्भ किया। गोमतीवेनने आभूषण उतार डालनेका निश्चय किया।

अगस्त ११, बुधवार

पुरुषोत्तम भाग गया। केशु, कृष्ण और नवीन ध्यान नहीं देते थे, इससे कल उनको प्रदोषका व्रत रखनेके लिए कहा और स्वयं रखनेका निश्चय किया।

अगस्त १२, बृहस्पतिवार

मनसुखलालने २५० रुपये में गोमतीबेनके आभूषण रखे।