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पत्र : मगनलाल गांधीको

मेरा स्वास्थ्य कुल मिलाकर ठीक है। बा की तबीयत भी वैसी ही है। मेरा मन तीन स्थानोंके लिए व्याकुल है, राजकोट, पोरबन्दर और बोलपुर। मुझे वहाँ [बोल- पुर] पहुँचने में अभी एक माससे अधिक लगेगा। तुम सब वहाँ धैर्यपूर्वक टिक गये, यह ठीक किया। किसान बहुत आ-जा नहीं सकता। किसानका बेटा बुवाई छोड़कर अपने किसान वापसे मिलनेके लिए जाये तो अधर्म होगा। तुम सब की कीर्ति वहाँ सर्वत्र फैलने लगी है, शायद यह तुम्हारे और मेरे किसी पुण्योदयका फल ही है। श्री एन्ड्रयूजने तुम्हारी बहुत प्रशंसा की है। अब हम जल्दी ही मिलेंगे, इसलिए मैं अधिक नहीं लिखता। यह पत्र तुम सभीके लिए है।

मेरा खयाल है, हम सबको हिन्दी, उर्दू, तमिल और बँगला लिपि सीख लेनी चाहिए। यदि सब बच्चोंको ये सिखाई जायें तो अच्छा हो। मैंने इस सम्बन्धमें जहाजमें काफी विचार किया था।

मैंने बँगलाका अध्ययन अच्छा कर लिया है। मैं यहाँसे १६ तारीखको राजकोट रवाना हो जाऊँगा । वहाँसे ५ फरवरीको लौटकर पूना जाऊँगा और पूनासे बोलपुरको रवाना हूँगा। बोलपुरका सबसे सीधा रास्ता कौन-सा है, यह लिखना। श्री ऐन्ड्रयूज और श्री पियर्सनसे पूछ लेना। तुम्हारे खान-पानका ठीक प्रबन्ध हो गया, यह अच्छा हुआ। मैं बिलकुल फलाहार कर रहा हूँ। मुख्यतः केला, मूंगफली और नीबूसे निर्वाह होता है।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

मुझे कुछ लाना है तो लिखना। मैं इंग्लैण्डसे पुस्तकें नहीं ला सका हूँ। नाम लिखो तो यहाँसे भिजवा दूं। श्री कैलेनबैकको आनेकी अनुमति नहीं मिली, इसलिए वे अभी नहीं आ सके हैं।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६६०) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी



१. चार्ल्स फेयर ऐन्ड्रयूज (१८७१-१९४०), अंग्रेज पादरी, जिन्होंने विश्व-भारती विश्वविद्यालयके कार्य में बहुत दिलचस्पी ली, कई वर्षों तक भारतीयोंके साथ काम किया, जिससे उन्हें 'दीनबन्धु 'की उपाधि मिली । वे गांधीजीके घनिष्ठ मित्र थे।

२. वस्तुत: गांधीजी राजकोटको १५ जनवरीको रवाना हुए थे, देखिए " डायरी", १९१५ ।

३. विलियम विनस्टले पियर्सन, ईसाई पादरी, और भारतीयोंके सक्रिय समर्थक; कुछ समय तक शान्तिनिकेतन में अध्यापक रहे।

४. हरमान कैलेनबैक, गांधीजोके जर्मन-साथी; इन्हें ब्रिटिश सरकारने युद्धके कारण भारत आनेकी अनुमति नहीं दी थी ।