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भाषण : बम्बईके सार्वजनिक स्वागत समारोहमें

दादाभाई नौरोजीसे भेंट की है। मुझे उनके जीवनसे बहुत प्रेरणा मिली है। और इस सम्बन्धमें में एक अन्य नामको कभी नहीं भूल सकता। यह नाम है मेरे मार्ग- दर्शक--कमसे-कम कहूँ तो मेरे राजनैतिक नेता-- माननीय श्री गोखलेका (हर्ष- ध्वनि) । उनका जीवन मेरे लिए मात्र प्रेरणाका एक स्रोत ही नहीं, उससे कुछ अधिक है। श्री गोखले मेरे लिए सहोदरसे भी बढ़कर रहे हैं। मेरे ऊपर मेरे समस्त देश- भाइयोंका जो भारी ऋण है, उसका उल्लेख करना भी मुझे न भूलना चाहिए; और अपने माता-पिताके सम्बन्धमें तो मैं क्या कहूँ, जिन्होंने मुझे अपना सम्मान करना सिखाकर सारे देशका सम्मान करना सिखाया । आप लोग हमारा सम्मान कर रहे हैं; किन्तु हम तो तुच्छ प्राणी हैं, असली वीर तो गिरमिटिया लोग हैं। मैं आपको उस गिरमिटिया भारतीयकी याद दिलाना चाहता हूँ, जिसने मुझे जेलमें चकित कर दिया था। जब में उस भारतीयसे मिला तो नहीं जानता था कि उसे किस बातसे जेल जानेकी प्रेरणा मिली थी और उसने जो शब्द कहे वे किस बातसे प्रेरित होकर कहे थे। मैंने उस भारतीयसे कहा कि उसे जेलमें आनेकी कोई आवश्यकता नहीं थी और मैंने हरबर्तासंह' - जैसे अपने देशभाइयोंको जेल जानेकी सलाह कभी नहीं दी। किन्तु उस वृद्ध पुरुषने कहा : जब मैंने अपने गरीब भाइयों और बहनोंको देशके सम्मा- नकी रक्षाके लिए जेल जाते देखा तो मैं अपने आपको रोक नहीं सका। मैं बाहर कैसे रह सकता था? मैं तो यहाँ अपने प्राण दे देना चाहता हूँ। और सचमुच हम तो जीवित रहे, किन्तु उसने अपने प्राण वहीं दे दिये । यही मनुष्य वीर पुरुष था और उसके-जैसे अन्य अनेक लोग भी हैं। यदि वह जीवित होता और भारत आता तो यहाँके लोगोंने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया होता और कदाचित् मैंने भी ऐसा ही किया होता। हरबर्तासिंहका स्मरण हमें समस्त सम्मान-भावसे करना चाहिए।

आपने गांधी महान्‌की पत्नीके रूपमें श्रीमती गांधीका भी सम्मान किया है। मैं इस महान् गांधीको नहीं जानता; किन्तु इतना कह सकता हूँ कि जो स्त्रियाँ अपने बच्चोंको लेकर जेल दौड़ गई थीं और बहुमतमें शामिल हो गई थीं, उनके कष्टोंके सम्बन्धमें आपको मेरी अपेक्षा श्रीमती गांधी अधिक बता सकती हैं।

अन्तमें श्री गांधीने उनसे अनुरोध किया कि आप मेरी और मेरी पत्नीकी सेवाएँ स्वीकार करें। हमें ईश्वर जितनी सामर्थ्य देगा उतनी सेवा करनेके लिए ही हम भारत आये हैं। उन्होंने कहा कि हम इस तरहका भारी स्वागत-सत्कार करवानेके

१. (१८२५-१९१७), ब्रिटिश संसद् (१८९३) में निर्वाचित होनेवाले प्रथम भारतीय सदस्य; १८८६, १८९३ और १९०६ में तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष निर्वाचित; पायर्टी ऐंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया (भारतमें दरिद्रता और अब्रिटिश शासन ) के लेखक; देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ३३५ ।

२. उत्तर प्रदेशका एक ७५ वर्षीय वृद्ध पुरुष; देखिए “भाषण : मद्रासके स्वागत समारोहमें ",

२१-४-१९१५ ।