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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए यहां नहीं आये हैं, क्योंकि हम अपने-आपको ऐसे पुरस्कारोंका पात्र नहीं समझते। मुझे तो लगता है कि यदि ऐसी बातोंके परिणामस्वरूप कहीं हमारे मस्तिष्कमें यह खयाल आया कि हमने कोई ऐसा कार्य किया है जिससे हम अपने सम्मानमें आयोजित इस प्रकारके भारी तमाशोंके सही पात्र बन गये हैं तो आप अपने इन आचरणोंसे हमें बिगाड़ेंगे ही। फिर भी आपने आजके इस अपराह्नमें हमारा जो भारी सम्मान किया है, उसके लिए मैं अपनी पत्नीकी ओरसे और अपनी ओरसे आपको हार्दिक धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि मातृभूमिकी सेवाके हमारे प्रयत्नमें हमें पूरे देशका आशीर्वाद प्राप्त होगा। अभीतक आपको मेरी असफलताओंका कोई ज्ञान नहीं है । आपको सारी खबरें मेरी सफलताओंकी ही मिली हैं। यहाँ आप हमें अपने अनावृत रूपमें देखेंगे और तब आपको हमारे दोष भी दिखाई देंगे। इन सम्भावित दोषों और असफलताओंको ध्यान में रखकर मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप उन्हें नजरअन्दाज कर दें। इस अनुरोधके साथ हम विनम्र सेवकोंके रूपमें अपने देशकी सेवा आरम्भ करने जा रहे हैं। श्री गांधीने अपना और अपनी पत्नीका भारी सम्मान करनेके लिए एक बार फिर लोगोंको हार्दिक धन्यवाद दिया।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १३-१-१९१५


६. भाषण : नेशनल यूनियनको सभामे

जनवरी १३, १९१५

जनवरी १३ को हीराबाग [ बम्बई ] में बम्बईकी नेशनल युनियनकी ओरसे श्री गांधी और श्रीमती गांधीके स्वागतार्थ एक सभा की गई। इसमें श्री तिलक' भी उप- स्थित थे, यद्यपि उन्हें औपचारिक निमन्त्रण नहीं भेजा गया था। सभामें लगभग २५० लोग आये थे। श्री तिलकने सभामें बोलते हुए कहा कि हम श्री गांधी और श्रीमती गांधीका सम्मान करके अपने कर्तव्यका ही पालन कर रहे हैं, क्योंकि वे एक दूरस्थ देशमें भारतके सम्मानको रक्षाके लिए लड़े हैं। उन्होंने कहा कि भारतमें हमारे इन सम्मानित अतिथियोंकी-सी आत्म-त्यागकी भावनासे युक्त और अधिक स्त्री-पुरुष उत्पन्न होने चाहिए। उन्होंने श्रोताओंके मनमें यह बात बिठाई कि यह वही शिक्षा है, जो कि उन्हें श्री गांधीके जीवन-कार्यसे ग्रहण करनी है।

श्री गांधीका भाषण फीका और औपचारिक था। उन्होंने कहा कि दक्षिण आफ्रि- काके भारतीय मातृभूमिके कृतज्ञ हैं, जिसने पिछले संघर्षमें उनकी सहायताके लिए

१. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (१८५६-१९२०); महान् भारतीय देशभक्त, राजनीतिज्ञ और विद्वान; देखिए खण्ड २, पृ४ ४१८ ।