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भाषण : सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी, बम्बई द्वारा आयोजित स्वागत समारोहम

स्थापित कोषमें खुलकर धन दिया। उन्होंने कहा कि श्री तिलकको बम्बईमें देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है, क्योंकि पूना जानेपर उनकी सेवामें उपस्थित होने और अपनी सम्मानांजलि भेंट करनेकी बात तो मैंने सोच ही रखी थी।

श्री बैपटिस्टाने कहा कि जबतक श्री गांधी सत्यपरता और आत्मसम्मानके आदर्श- पर दृढ़ हैं। -जैसा कि वे अबतक अपने जीवनमें रहे हैं -- तबतक इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि वे अपना गुरु किसे चुनते हैं (श्री बैपटिस्टाका संकेत श्री गांधीके इस कथनकी ओर था कि श्री गोखले उनके गुरु हैं) । श्री वैपटिस्टा और श्री अली मुह- म्मद भीमजी, दोनोंने वर्तमान युद्धमें न्यायके पक्षका समर्थन करनेमें भारतीय सेनाको बहादुरीका उल्लेख किया।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे गवर्नमेंट पुलिस एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१५, पृष्ठ ४०, पैरा ६०

७. भाषण : सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी, बम्बई द्वारा आयोजित स्वागत समारोहमें

जनवरी १४, १९१५

जनवरी १४को सायंकाल भारत-सेवक समाजकी बम्बई शाखाके सदस्यों तथा उसके सहायकों, समर्थकों और कार्यकर्त्ताओंके रूपमें उससे सम्बद्ध कुछ लोगोंकी ओरसे मण्डलके भवनमें श्री गांधी और श्रीमती गांधीका स्वागत किया गया । भवनके प्रांगणको बड़े सुरुचिपूर्ण ढंगसे सजाया गया था। उपस्थित लोगोंमें सर भालचन्द्र कृष्ण, सर विठ्ठल- दास ठाकरसी, सर जगमोहनदास, सेठ दानी, सेठ हंसराज प्रागजी, श्रीमती रमाबाई रानडे, श्रीमती जगमोहनदास, श्रीमती सोनाबाई जयकर, श्रीमती बहादुरजी आदि शामिल थे। श्री गांधी और श्रीमती गांधी के आ जानेपर एकत्रित लोगोंकी ओरसे श्री देवधर बोले ।

उसके बाद श्री गांधीन एक संक्षिप्त भाषण देते हुए कहा कि भारत-सेवक-समाज को, जो जल्दी ही मेरा कार्यक्षेत्र बनेगा, सहायता देनेवाले इतने स्त्री-पुरुषोंको देखकर मुझे गर्व होता है। मैंने श्री गोखलेको अपना राजनैतिक नेता और गुरु स्वीकार कर लिया है और मैं उन लोगोंको भाग्यशाली समझता हूँ जिन्हें श्री गोखलेके साथ काम करनेका सुअवसर प्राप्त हुआ है। मैं एक साल तक देशके भिन्न-भिन्न भागोंका दौरा करके स्वयं स्थितिका अध्ययन करूँगा और इसके बाद ही अपने कर्तव्यका निश्चय कर पाऊंगा। अन्तमें उन्होंने अपनी और श्रीमती गांधीकी ओरसे भी अपने सम्मानके लिए समस्त स्त्री-पुरुषोंको धन्यवाद दिया।

१. सत्याग्रह-कोष; देखिए “पत्र : जे० बी० पेटिटको ”, १६-६-१९१५ ।

२. सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी, जिसकी स्थापना श्री गोखलेने पूनामें सन् १९०५ में की थी। इसके सदस्योंको देशके लिए आजीवन कार्य करनेका व्रत लेना पड़ता था ।