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पत्रका अंश

उन्हें इस सम्मानके लिए धन्यवाद देते हुए उनसे भी यही कहा कि मैं माननीय श्री गोखलेके मार्गदर्शन में कार्य करते हुए ठीक मार्गका अवलम्बन करूंगा, इसका मुझे पूरा विश्वास है।

श्री गांधीने आगे कहा कि सभापति महोदयन दक्षिण आफ्रिकी प्रश्नका उल्लेख किया है। मुझे इस सम्बन्धमें बहुत कुछ कहना है और मैं निकट भविष्यमें बम्बईकी जन- ताके सम्मुख और उसके द्वारा समस्त भारतके सम्मुख पूरी स्थितिका स्पष्टीकरण कर दूंगा। समझौता सन्तोषजनक है और मुझे विश्वास है कि जो-कुछ प्राप्त करना शेष है वह भी मिल जायेगा। अब दक्षिण आफ्रिकियोंने यह जान लिया है कि वे भार- तीयोंकी बिलकुल उपेक्षा नहीं कर सकते और न उनकी भावनाओंको ठुकरा सकते हैं ।

हिन्दू-मुस्लिम समस्याके सम्बन्धमें मुझे बहुत-कुछ जानना बाकी है, किन्तु मैं अपने दक्षिण आफ्रिकाके इक्कीस वर्षके अनुभवको सदा अपने सम्मुख रखूँगा और मुझे सर सैयद अहमदका' वह एक वाक्य अब भी स्मरण है। उन्होंने कहा था कि हिन्दू और मुसल- मान भारत माताकी दो आँखें हैं और यदि एक आँख एक ओर देखे और दूसरी दूसरी ओर, तो दोमें से कोई कुछ भी नहीं देख सकेगी और यदि एक आँख चली जाती है तो दूसरी आँखकी ज्योति भी उसी हदतक कम हो जायेगी। दोनों जातियोंको भविष्य में यह बात ध्यान में रख कर चलना चाहिए।

अन्तमें, उन्होंने अपना और अपनी पत्नीका जबर्दस्त सम्मान करनेके लिए सभाको फिर धन्यवाद दिया।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १५-१-१९१५

९. पत्रका अंश

[जनवरी १५, १९१५ से पूर्व]

तुम राधासे मिले होगे। उससे खास तौरसे कहना कि मुझे पत्र लिखे। रलि- यातवेनसे कहना कि धीरज रखे। ईश्वर चाहेंगे तभी मिलेंगे। किन्तु मुझसे मिलनेका लोभ छोड़ देना चाहिए। मैं बहुत कठिन कामोंमें फँसा हुआ हूँ। उसके दर्शन करनेके

१. सर सैयद अहमद खाँ (१८१७-१८९८); शिक्षाशास्त्री और सुधारक, अलीगढ़के मोहम्मडन ऐंग्लो ओरिएंटल कॉलेजके संस्थापक ।

२. इस पत्रका केवल सातवाँ पृष्ठ उपलब्ध है ।

३. ऐसा प्रतीत होता है कि गांधीजीने यह पत्र भारत आनेके तुरन्त बाद बम्बईसे राजकोटको रवाना होनेसे पूर्व लिखा होगा ।

४. भगनलालकी पुत्री ।

५. गांधीजीकी बहन, जिन्हें गोकीबेन भी कहते थे ।