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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए मन तो बहुत करता है; किन्तु समय ही नहीं है। घरकी स्थिति कैसी है, आदि सब खबर लिखना। फूलीकी तबीयत कैसी है, सूचित करना। अब घरमें सामान कौन लाता है, आदि, घरकी स्थितिका पूरा हाल लिखना।

मैं हरिलालसे मिला था। उसका चेहरा बहुत अच्छा लगता है।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ६७१४) से।

१०. राजकोटके नागरिकोंके द्वारा भेंट किये गये मानपत्रका उत्तर

जनवरी १७, १९१५

मेरी तबीयत इन दिनों अच्छी नहीं रहती और पिछले ३६ घंटेसे तो बहुत ही खराब है। फिर भी, मैं अपने भीतर इतनी शक्ति बचाये रहा कि अपनी जन्म भूमि राजकोट आ सकूं। यहाँ आकर ही में इस बातका अनुभव पूरी तरह कर पाया हूँ कि श्रीयुत केवलराम भाईकी मृत्युसे कितनी बड़ी क्षति हुई है। उन्हें मैं अपने गुरुजनकी तरह मानता था। उनके निधनकी बात सोचकर मुझे बहुत दुःख होता है। मैं पण्डितजीका बहुत कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने अपने सद्गुणोंसे इस प्रान्तके लोगोंका प्रेम प्राप्त कर लिया है और मेरे प्रति शुभकामना प्रकट की है। स्वर्गीय केवलराम भाईकी अनुपस्थितिमें आप सरीखे उनके परमप्रिय मित्रके हाथसे मुझे यह मानपत्र प्राप्त हुआ है, इसे सौभाग्य मानता हूँ। मुझे माननीय गवर्नर साहबने कहा था कि भारतमें आपके प्रति जो लोकभावना उमड़ रही है, उसको देखते हुए आपका कार्य लाभकर सिद्ध होगा। आज मुझे उसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिल गया है। सबसे पहले मेरे मित्र शुक्लजीकी पुत्रीने मुझे तिलक लगाया और अक्षत-फूलसे मेरा स्वागत किया। इसे मैं अपना आशीर्वाद-रूप मानता हूँ। मुझे राजकोटमें जो सम्मान मिल रहा है वह हदसे ज्यादा है। भारत में इस प्रकार असीम सम्मान देनेकी प्रथा-सी हो गई है।

कहावत है कि "दूरके ढोल सुहावने ।" आपने अभीतक मेरी जो प्रशंसा सुनी है वह इसी कहावतको चरितार्थ करती है। वास्तवमें हमने कुछ विशेष नहीं किया है। हम तो यहाँ सीखनेवालोंके रूपमें आये हैं। यह तो सभीने अनुभव किया होगा कि आज दुनियामें लोग अनेक हेतुओंसे कार्य करते हैं। किसी व्यक्तिके हृदयमें क्या है, यह जानना बहुत कठिन है। अब हम स्वदेश आ गये हैं और हम जो कार्य कर रहे हैं उसके आधारपर हमारे सम्बन्धमें सही राय कायम करना आपके लिए सुगम होगा। संसार आज स्वार्थी लोगोंसे भरा हुआ है। और लोग किसी-न-किसी रूपमें स्वार्थसे प्रेरित होकर काम करते हैं। किन्तु ऐसे स्वार्थभावसे कार्य करना दूधमें विष मिलानेके समान होता है। हमें काठियावाड़से बहुत कुछ सीखना है और हमारा यह प्रशिक्षण पूरा हो जानेके बाद आपको हमारी परीक्षा लेनेका अवसर मिलेगा। किन्तु, मुझे कहना चाहिए कि सम्भव

१. इसकी अध्यक्षता राजकोटके दीवान बेजनजी मेरवानजी उमरीने की।

२. राजकोटके एक बैरिस्टर, जो गांधीजीके मित्र और सहाध्यायी थे।