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राजकोट में मोढ-समाज द्वारा भेंट किये गये मानपत्रका उत्तर
१३

है, इस प्रसंगमें आपको हमारी असफलताएँ भी देखनेको मिलें। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप तब भी हमारे प्रति यही स्नेह-भाव बनाये रखें, जो आज प्रदर्शित कर रहे हैं। मेरी किसी असफलताके कारण इस देशके दूसरे भागोंके लोग भले ही मेरा त्याग कर दें, किन्तु यदि राजकोटके लोग मेरी खामियोंको उदारतापूर्वक दरगुजर करेंगे तो मैं मानूंगा कि आपने आज जो स्नेह दिखाया है वह वस्तुतः आपके अन्तःकरणकी ऊर्मियोंसे उद्भूत हुआ है। और उस समय आपके इस स्नेहकी खरी कसौटी होगी। दक्षिण आफ्रिकामें हमने जो कुछ किया है, उसके सम्बन्धमें मैं आपको बता दूं कि हमसे निम्न श्रेणीके लोगोंने उसकी तुलनामें लाख दर्जे अच्छा काम कर दिखाया है। एक ७५ वर्षका वृद्ध पुरुष और एक १७ वर्षकी बालिका, दोनों जेलमें मर गये। मेरे पास तो बैरिस्टरीकी सनद है। इसलिए मुझे उसके बलपर कार्य करनेकी प्रेरणा होना स्वाभाविक है। किन्तु बेचारे असंख्य स्त्री- पुरुषोंने मात्र श्रद्धाके आधारपर और अपना कर्त्तव्य मानकर जेलके कष्ट सहते हुए देश- सेवामें अपने जीवन अर्पित कर दिये हैं। आप उन्हें क्या सम्मान देंगे? इन लोगोंने सच्चे शूरवीरोंकी भाँति अपने प्राणोंकी आहुतियाँ दे दी हैं। अब, आपने हमारा आज जो सम्मान किया है उसे आशीर्वाद-रूपमें स्वीकार करके हम अपनी सेवाएँ इस देशके लिए अर्पित करते हैं और इस घोषणाके साथ उपकार मानते हैं कि यदि अपने कर्त्तव्यपालनके लिए हम निरन्तर उत्सुक बने रहे तो हम राजकोटके सपूत हैं और यदि उससे पीछे हटे तो कपूत हैं ।

[ गुजरातीसे ]

काठियावाड़ टाइम्स, १७-२-१९१५

११. राजकोटमें मोढ-समाज द्वारा भेंट किये गये मानपत्रका उत्तर

जनवरी २०, १९१५

मानपत्रका उत्तर देते हुए श्री गांधीने बताया कि सार्वजनिक जीवनमें प्रवेश करनेवालों को अपना हृदय कितना कड़ा करना पड़ता है। मेरे भाई स्वर्गवासी हो गये हैं। मुझे ऐसे ही कई अन्य वियोग भी सहने पड़े हैं। फिर भी मुझे भोज आदि समा- रोहोंमें जाना पड़ता है; और ऐसी शोकपूर्ण स्थितिके बावजूद कविता, गायन आदि सुनने पड़ते हैं। ऐसे कष्टप्रद मनोभावको अलग रख कर मैं जो मानपत्र लेता हूँ वह जनताके स्नेहके रूपमें ही लेता हूँ। मैंने जो थोड़ा-बहुत किया है, लोगोंको उसका असली मर्म समझना चाहिए; और जब-कभी मैं अपनी जाति अथवा सामान्य जन समु- दायोंके हितार्थ कुछ करनेको तैयार होऊँगा तो आप लोगोंके स्नेहका भरोसा करके आपसे सहायता मागूँगा ।

२. हरबतसिंह और वलियम्मा; देखिए " भाषण: मद्रासके स्वागत समारोहमें ", २१-४-१९१५ ।

२. लक्ष्मीदास गांधी, जिनका देहावसान पोरबन्दर में मार्च ९, १९१४ को हुआ था ।