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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि आप उस गाढ़ वक्तमें मेरे प्रति सहानुभूति दिखायेंगे तो मैं समझँगा कि इस समय आपने मेरे प्रति जो स्नेह दर्शाया है, वह सच्चे हृदयसे दर्शाया है। और यदि ऐसी मदद नहीं मिली तो मैं मानूँगा कि आपने इस समय जो कुछ किया, वह अपनी गतानुगतिक प्रवृत्तिके कारण; और आप मानपत्र चाहे सोने या चांदीपर लिखकर दें अथवा कागजपर, तीनों एक-से होंगे -- धूलके समान होंगे। मुझे यहाँ स्वीकार करना चाहिए कि जब में बैरिस्टर होकर स्वदेश लौटा था तो अन्य स्थानोंके मोढ-समाजने मुझे त्याग दिया था, और तब राजकोटके मोढ-समाजने ही मेरा हाथ थामा था । यदि मैं उस बातको भूल जाऊँ तो कृतघ्न माना जाऊँगा, और इसीसे आज मुझे जो सम्मान मिल रहा है उसे मैं आशी- र्वाद-रूपमें स्वीकार करता हूँ ।

[ गुजरातीसे ]

काठियावाड़ टाइम्स, २४-१-१९१५

१२. दरबारगढ़में भेंट किये गये मानपत्रका उत्तर

जनवरी २२, १९१५

श्री गांधीने कहा कि इस अवसरपर हिन्दू और मुसलमानोंको एक हुआ देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है और आपने भी ऐसी एकता कायम की है, यही जानकर मन धोराजी आनेका निमन्त्रण स्वीकार किया। भविष्य में दोनों जातियोंको और भी निकट लाने तथा इनके बीच अधिक सद्भावनापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करनेका काम हाथमें लूंगा।

[ अंग्रेजीसे ]

काठियावाड़ टाइम्स, २४-१-१९१५

१३. पोरबन्दरके मोढ-समाज द्वारा भेंट किये गये
मानपत्रका उत्तर

जनवरी २५, १९१५

में थोड़ा घूम-फिर कर फिर यहाँ आ जाऊँगा । यहाँकी पहाड़ियोंमें औषधियाँ बहुत होती हैं। उनके सम्बन्धमें मुझे बहुत कुछ जानना है। मैं अपने मित्र भूतपूर्व क्यूरेटर श्री जयकृष्णभाईके साथ सप्ताह भर घूमूँगा और फिर आपके पास आ जाऊँगा।

[ गुजरातीसे ]

काठियावाड़ टाइम्स, ३१-१-१९१५

१. सौराष्ट्रमें धोराजीके निकट एक स्थान ।