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१४. पोरबन्दरमें नागरिकों द्वारा भेंट किये गये
मानपत्रका उत्तर

जनवरी २५, १९१५

अपनी बाल्यावस्थाकी भूमिमें आपका आशीर्वाद स्वीकार करते हुए मुझे असीम आनन्दका अनुभव हो रहा है। मैंने देश सेवा की है, इस सम्बन्धमें मुझे कहना चाहिए कि सत्यका पालन सिर्फ में ही कर सकता हूँ, ऐसी बात नहीं है। यदि मनमें निश्चय कर लें, तो हम सभी उसका पालन कर सकते हैं। और हम ऐसा करें तो अकेला मैं ही नहीं, बल्कि सभी सम्मानके पात्र कर किसी उत्तम कार्यमें भाग ले सकेंगे।

[ गुजरातीसे ]

काठियावाड़ टाइम्स, ३१-१-१९१५

१५. पत्र : मेजर हेनकॉकको

राजकोट

जनवरी २६, १९१५

प्रिय महोदय,

मुझे खेद है कि पोरबन्दरमें रहते हुए मैं आपके दर्शनार्थ आ नहीं सका। अब जब फिर पोरबन्दर आऊँगा तब वैसा अवसर प्राप्त करनेका प्रयत्न करूंगा। फिल- हाल पोरबन्दरके अधिकारियों और जनताने वहाँ मेरे और मेरी पत्नीके प्रति जो अतीव कृपाभाव प्रदर्शित किया, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देना चाहूँगा । यदि आप अन्यथा न मानें तो आपने दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रह संघर्षमें जो सहायता दी थी, उसके लिए भी आपको धन्यवाद देना चाहूँगा। माननीय श्री गोखलेको आपने अपनी उदारतापूर्ण भेंटके साथ जो स्नेह-भरा पत्र भेजा है, उसकी वे चर्चा कर रहे थे।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

मेजर हेनकॉक'

मूल अंग्रेजी पत्रकी नकल (सी० डब्ल्यू० ५६६१) से।

सौजन्य : डिस्ट्रिक्ट डिप्टी कलक्टर, पोरबन्दर

१. राणाकी नाबालगीकी अवधिमें पोरबन्दर राज्यके प्रशासक, बादमें पश्चिमी भारतीय राज्य एजेंसी में वाइसरायके एजेंट |