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१६. पत्र : प्रभुदास भगवानदासको

राजकोट

माघ सुदी ११ [ जनवरी २६, १९१५]

आपका प्रेमपूर्ण तार मुझे गोंडलमें मिला था। मैंने उसका उत्तर तारसे दिया था; मिला होगा। मुझे दुःख है कि मैं लोगोंका निमन्त्रण स्वीकार नहीं कर सका। किन्तु मेरी स्थिति ऐसी है कि मैं मजबूर हूँ। आशा है, आप सब यह जानकर मुझे क्षमा कर देंगे। मेरा स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया है कि यदि मुझे अपनी विधवा भाभियोंसे मिलने राजकोट और पोरबन्दर न जाना होता तो मैं फिलहाल काठियावाड़ न आता । इन दोनों स्थानों में जाते समय मार्ग में गोंडल और दूसरे शहर पड़े, इसलिए मुझे वहाँ रुकना पड़ा। भावनगर और अन्य शहरोंमें जानेकी बात सोचता हूँ; मगर लगता है कि मेरे पास उसके योग्य स्वास्थ्य और समय नहीं बचा। अब तो मैं दो-तीन मास बाद लौटूंगा। आशा है, तब आप सबके दर्शन कर सकूँगा ।

मोहनदास करमचन्द गांधी

के सादर प्रणाम

[ गुजरातीसे ]

काठियावाड़ टाइम्स, ३१-१-१९१५

१७. गोंडलकी रसशालामें भेंट किये गये मानपत्रका उत्तर

जनवरी २७, १९१५

वैद्यराज संस्कृत और आयुर्वेदके अच्छे विद्वान हैं। उनकी स्थापित की हुई रसशाला आयुर्वेद पद्धतिसे प्रजाकी सेवा कर रही हैं। रसशालाने जो साहित्य प्रकाशित किया है। वह जनताके लिए बहुत उपयोगी है। उनका [वैद्यराजका] कुछ साहित्य [ दक्षिण] आफ्रिकामें पढ़ा करता था। एक ऐसे विद्वानके द्वारा इस मानपत्रमें अपने सम्बन्धमें कही गई बातोंको सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। मैं उन्हें सदा अपनी स्मृतिमें सहेजकर रखूंगा। मेरे मनमें आयुर्वेदके प्रति बहुत आदर है। वह भारतकी प्राचीन विद्या है, जिससे लाखों गाँवोंके करोड़ों लोगोंको आरोग्य प्राप्त होता रहा है। मैं हर व्यक्तिको

१. भावनगरके व्यापारी-समाजके प्रमुख ।

२. उपलब्ध नहीं है।

३. गांधीजी गोंडल (सौराष्ट्र) में स्थापित आयुर्वेदिक दवाखाना रसशाला औषधाश्रमको देखने गये थे और वहाँ नागरिकोंकी एक विशाल सभामें बोले थे । सभामें राज्यके दीवान रणछोड़दास पटवारी भी उपस्थित थे ।

४. जीवराम कालिदास शास्त्री, जिन्होंने रसशालाकी ओरसे उन्हें मानपत्र भेंट किया था ।