आयुर्वेदकी शिक्षाके अनुसार अपना जीवन बितानेकी सलाह देता हूँ। मेरा यह आशीर्वाद है कि रसशाला औषधाश्रम और वैद्यराज आयुर्वेदकी अधिकसे-अधिक सेवा करने में समर्थ हों।
[गुजरातीसे ]
रसशाला औषधाश्रम, गोंडलके १९४८ में प्रकाशित विवरणसे ।
जनवरी २७, १९१५
श्री गांधीने ... माननीय ठाकुर साहबके उपकारका उल्लेख करते हुए कहा कि मुझे जो विशेषण दिये गये हैं, मैं उनके योग्य नहीं हूँ फिर भी में भारतमें किसी ऐसे व्यक्तिकी खोजमें हूँ, जो उनके योग्य हो। उन्होंने उनके योग्य बननेके अपने प्रयासका जिक्र करते हुए कहा कि मैं दीर्घकालसे इस प्रयासमें रत हूँ और आगे भी रहूँगा। उन्होंने फिर कहा कि मैं ये सभी विशेषण भगवान् कृष्णको अर्पित करता हूँ। केशवजी सेठको कम्बल देते हुए उन्होंने उनसे सौ रुपये देशके निमित्त या धर्मार्थ व्यय करनेका अनुरोध किया। उन्होंने अन्तमें ब्रह्मचर्यको ही सभी गुणोंका मूल और सभी कार्योंकी सिद्धिका साधन बताते हुए कहा कि देखना है, जो भावनाएँ यहाँ इस घड़ी प्रकट की गई हैं वे कसौटीके समय भी इसी रूपमें कायम रहती हैं या नहीं।
[गुजरातीसे ]
गुजराती, ७-२-१९१५
फरवरी २, १९१५
अहमदाबाद गुजरातकी राजधानी है और यहीं मैंने अपनी परीक्षा दी थी । अहमदाबादके प्रति मेरे मनमें विशेष आदर होनेका कारण यह है कि सत्याग्रह संघर्ष चलाने और कष्ट सहनेमें मेरा साथ देनेवाले श्री सुरेन्द्रनाथ मेढ यहींके निवासी है। अहमदाबादने सत्याग्रह संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भाग लिया है। आज मैं उसकी यात्रा करनेके लिए आया हूँ।"
१. नीलाम किये गये इस कम्बलको श्री सेठने इतने ही पैसोंमें खरीदा था ।
२. बॉम्बे क्रॉनिकल के १-२-१९१५ के अंकमें प्रकाशित अंग्रेजी रिपोर्ट में आगे बताया गया था कि गांधीजीने कहा, देशसेवकमें जो गुण होने आवश्यक हैं वे हैं-सादा जीवन, सत्यवादिता तथा ब्रह्मचर्य, और मेरी आकांक्षा काठियावादके आसपास एक ऐसी संस्था स्थापित करनेकी है जिसमें देशकी नवोदित पीढ़ीको इन आदशौंकी शिक्षा दी जा सके ।
३. सर चुन्नीलाल माधोलाल इस सभाके अध्यक्ष थे ।
४. मैट्रिकको, १८८७ में ।
५. ये दो वाक्य गुजराती १४-२-१९१५ से लिये गये हैं ।
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