तो इस प्रश्नका उत्तर केवल त्रैराशिक पर ही रहता है। जितने अधिक शिक्षक भेजे जायें, उतना ही शीघ्र हिन्दीका प्रचार हो जायेगा। शिक्षकोंके भेजनेके साथ ही साथ स्वयं शिक्षण-पुस्तकें भी बनानी चाहिए। इन पुस्तकोंका प्रचार बिना मूल्य होना आवश्यक है। भाषा सीखनेकी आवश्यकता बतलाने के लिए प्रतिष्ठित वक्ताओंका भेजना भी आवश्यक है।
जैसा प्रचार द्राविड़ देशमें करना आवश्यक है, वैसा ही प्रचार बम्बई आदि प्रदेशमें भी उचित है। मराठी, गुजराती भाषा-भाषियोंके लिए भी हिन्दी पुस्तकें तैयार करवानी चाहिए और उन प्रदेशोंमें भी प्रचारक भेजे जाने चाहिए।
इस कार्यमें द्रव्यकी आवश्यकता है। हमारा धनाढ्य समुदाय इस कामको बोझ-रूप न समझे। उसका यह कर्त्तव्य है कि इस महान् कार्यमें वह सहायता दे।
प्रबन्ध करनेके लिए एक छोटीसी समिति बनानेकी आवश्यकता है। इतना ध्यान रखना उचित है कि इस समितिमें केवल कार्य करनेवाले ही चुने जायें।
इस निवेदनमें एक गर्भित बात आ जाती है। वह यह है कि हिन्दी और उर्दूके बीचमें भेद नहीं रखा गया है। वास्तवमें हम अपने इस्लामी भाइयोंसे क्यों झगड़ें? वे उर्दू लिपिमें पढ़ें, हममें से थोड़े लोग उर्दू लिपि भी जानते हैं तथा और अधिक लोग सीख लेंगे। जबतक इस्लामी भाई नागरी लिपि नहीं पढ़ लेंगे तबतक हमारे राष्ट्रीय कार्य दोनों लिपियोंमें हुआ करेंगे――कैसे ही क्यों न हो इस प्रश्नका निपटारा हम इस्लामी भाइयों के साथ भ्रातृभावसे कर सकते हैं। अब तो उक्त लिपिसे सारे भारत-वर्षमें भाषाका प्रचार करना एक मुख्य कर्त्तव्य है।
३२७. वक्तव्य: चम्पारन समितिके बारेमें अखबारोंको
बाँकीपुर
मई २९, १९१७
‘पायनियर’ में प्रकाशित उस वक्तव्यके संदर्भमें, जिसमें यह कहा गया था कि सामान्य तौरपर जमींदारों और काश्तकारोंके, और विशेष रूपसे बागान मालिकों और रैयतके बीचके सम्बन्धोंकी जाँचके लिए बिहार सरकार एक समिति नियुक्त करनेका विचार कर रही है, श्री गांधीने समाचारपत्रोंमें निम्नलिखित वक्तव्य भेजा है:
यदि प्रचलित जानी-मानी शिकायतें तुरन्त दूर कर दी जायें तो एक निश्चित अवधिके अन्दर कुछ सुनिश्चित मसलोंकी जाँच करके अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनेवाली समितिकी नियुक्तिसे वर्तमान स्थितिका समाधान हो जायेगा। उस हालतमें मेरे सहयोगियोंका और मेरा काम फिलहाल मुख्यरूपसे जाँच-समितिके सामने मुख्य-मुख्य सबूत इकट्ठा करके पेश करानेका ही होगा।
पायनियर, ३१-५-१९१७