हमने [दक्षिण आफ्रिकामें ] सिर्फ अपना कर्त्तव्य ही निभाया है। मैं इस देश में सीखनेके लिए आया हूँ। मुझे मेरे पूज्य गुरु श्री गोखलेने यह सलाह दी है कि जो व्यक्ति पच्चीस वर्ष तक भारत से बाहर रहा हो उसे स्थितिका पूरा अध्ययन करनेसे पूर्व भारत के सम्बन्ध में बोलना नहीं चाहिए। इसी कारण मैं अपने कान खुले रखता हूँ और मुँह बन्द ।
[ गुजराती से ]
काठियावाड़ टाइम्स ७-२-१९१५; गुजराती, १४-२-१९१५
फरवरी ७, १९१५
आजके समारोहसे मुझे जैसी प्रसन्नता हुई है वैसी प्रसन्नता मुझे बड़े और भव्य समारोहोंसे भी नहीं हुई।
मैं हर समय आपसे मिलनेका और आपके साथ सम्पर्क रखनेका प्रयत्न करता रहूँगा।
[ गुजराती से ]
गुजराती, १४-२-१९१५
बम्बई
फरवरी ७, १९१५
प्रिय चार्ली,
पत्र-व्यवहारके लिए समय नहीं निकाल पाया हूँ। मुझे अभी श्री सीतलवाडकी प्रतीक्षा करते हुए कुछ क्षण मिल गये हैं। मैं कुछ ही दिनोंमें तुम्हारे पास पहुँच रहा हूँ। हम लोग आज रातको पूना जा रहे हैं। १८ तारीखको या उससे पहले बोलपुरके लिए रवाना हो जाने की सम्भावना है। वहाँ पहुँचनेकी तिथि निश्चित होते ही तुम्हें तार द्वारा सूचना दूंगा।
सस्नेह,
तुम्हारा,
मोहन
गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र ( सी० डब्ल्यू० ५६६३) से। सौजन्य : राधाबेन चौधरी
१. गांधीजी किसी विधिवत् निमन्त्रणके बिना ही अन्त्यज बालकोंके मिशन स्कूलको देखने गये थे ।
इन अन्त्यजोंको ही बादमें उन्होंने 'हरिजन' की संज्ञा दी । २. डॉ० सर चिमनलाल हरिलाल सीतलवाड बम्बईके एक प्रमुख वकील, बम्बई विश्वविद्यालयके उप-कुलपति ।