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२२. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश'

फरवरी ७, १९१५

सत्य, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह इन पाँचों यमोंका पालन करना प्रत्येक मुमुक्षुके लिए आवश्यक है। मुमुक्षु तो सभीको होना चाहिए। इसलिए मनुष्यका चरित्र उक्त पांचों यमोंकी भित्ति पर बनाया जाना चाहिए। इनका आचरण समस्त संसारी जीवोंको करना चाहिए, इसमें सन्देह नहीं । व्यापारी हो तो भी मनुष्य न तो असत्य बोले और न असत्य आचरण करे। गृहस्थ हो तो भी ब्रह्मचर्यका पालन करे। आजीवन अहिंसाका पालन किया जा सकता है। चोरी न करना (अस्तेयका पालन करना) और धन अथवा वस्तुओंका परिग्रह न करना लोक-व्यवहार चलाते हुए कठिन है। फिर भी आदर्शको ध्यान में रखकर एक सीमा बनानी चाहिए और जब वैराग्य उत्पन्न हो तो महात्याग भी किया जा सकता है।

जो कोई उक्त व्रतोंका पालन करता है उसे इन सब झंझटोंमें से निकलनेका मार्ग मिल ही जाता है।

[ गुजरातीसे ]

बापुनी प्रसादी

२३. पत्र: महात्मा मुन्शीरामको

सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी

पूना सिटी

माघ कृष्णपक्ष ८ [फरवरी ८, १९१५]

महात्माजी,

आपका तार मुझे मीला था । उस्का प्रत्युत्तर तारसे भेजा था वो आपको मीला होगा। मेरे बालकोंके लीये जो परिश्रम आपने उठाया और उन्होंको जो प्यार बतलाया उस वास्ते आपका उपकार माननेका मैंने भाई एड्ररुझको लीखा था । लेकीन आपके

१. गांधीजीके भानजे, आनन्दबेनके पुत्र ।

२. फीनिक्सके अध्यापक और बालक १९१५ में गुरुकुल काँगड़ी गये थे । उनके उल्लेखसे लगता है कि पत्र १९१५ में लिखा गया था । १९१५ में माघ कृष्ण ८ फरवरी ७ को पढ़ती है, किन्तु गांधीजी ८ फरवरीको नम्बईसे पूना गये थे ।

३. महात्मा मुन्शीराम (१८५६-१९२३), बादमें स्वामी श्रद्धानन्दके नामसे प्रसिद्ध; गुरुकुल काँगड़ीके संस्थापक और आर्यसमाजके प्रमुख नेता ।

४. और ५. उपलब्ध नहीं है ।