चरणोंमें सीर झुकानेकी मेरी उमेद है। इसलीये बिन आमंत्रण आनेकी भी मेरी फरज समझता हूं। में बोलपुरसे पीछे फोरुं उस वखत आपकी सेवामें हाजर होनेकी मुराद रखता हूं।'
आपका सेवक,
मोहनदास गांधी
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल पत्र (जी० एन० २२०५) की फोटो नकलसे।
[पूना ]
माघ बदी ११ [ फरवरी १०, १९१५ ]
यह पत्र पूनामें [ सवेंट्स ऑफ इंडिया ] सोसाइटीके भवनसे लिख रहा हूँ। तुमने जो कपड़े मँगाये हैं उनके सम्बन्धमें मैंने चि० जमनादासको कहा है। मैं मगनभाईके पिताजी से मिला। बहुत बातें हुईं । वे कुछ ठंडे भी पड़ गये हैं; किन्तु अपने पुत्रको अभी न भेजेंगे। हमें तीन महीने तक राह देखनी पड़ेगी।
मेरा ख्याल है कि चि० नारणदासका पुत्र हमारे साथ आयेगा । किन्तु मैंने अभीतक यह तो सोचा भी नहीं है कि वहाँ इन सबके लिए जगह होगी या नहीं। यदि जगह न हुई तो हम वहाँसे जल्दी चले आयेंगे। उतावलीमें कोई निश्चय नहीं किया जा सकता, इसलिए कुछ देर तो लगेगी। इस बीच जो लोग हमारे साथ रहनेवाले हैं वे बेकार न भटकें, इसी विचारसे उनको वहाँ लानेका फैसला किया है।
मुझे प्रो० बरवेने बताया है कि सितार और तबला वहाँ कलकत्तमें अच्छे और सस्ते मिलेंगे इसलिए ये चीजें नहीं ला रहा हूँ ।
मैं बहुत करके सोमवार अर्थात् १५ तारीखको यहाँसे रवाना हो जाऊँगा । जैसा तुमने लिखा है उस हिसाबसे मुझे वहाँ १७ तारीखको पहुँचना चाहिए। तुमने जो रास्ता बताया है उसीसे आनेका निश्चय किया है। अब कुछ ही दिनोंमें मिलेंगे, इसलिए
१. गांधीजी १५ फरवरीको बोलपुरके लिए रवाना हुए थे; किन्तु वे काँगड़ी ६ अप्रैलको ही पहुँच सके थे ।
२. पत्र में गांधीजीके दौरेका जो विवरण दिया गया है उससे यह १९१५ में लिखा गया प्रतीत होता है ।
३. मगनलालके छोटे भाई ।
४. फीनिक्स शालाके अध्यापक पटेल, जो मगनलालके साथ भारत आ गये थे ।
५ मगनलालके छोटे भाई ।