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पूनाकी सभाओं में प्रश्नों के उत्तर

और नहीं लिखता। में बम्बई रविवारको पहुँचूँगा । यदि तुम्हें कोई तार-आदि देना हो तो वहींके पतेपर देना।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

मेरे साथ बा, हरिलाल, जमनादास, काकू, रणछोड़, शान्ति और छोटालाल. छबीलदासका, इतने तो आ ही रहे हैं। शायद एक-दो व्यक्ति और साथ हों।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६४४) से।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

२५. पूनाकी सभाओंमें प्रश्नों के उत्तर

फरवरी ११-१२, १९१५

श्री गांधी सोमवारको प्रातः पूना पहुँचे....वे भारत सेवक समाज (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के भवनमें ठहराये जानेवाले थे। जब वे गाड़ीमें स्टेशनसे वहाँ जा रहे थे तो मार्गमें उन्हें कई स्थलोंपर मालाएँ पहनाई गईं। गुरुवारकी शामको दक्षिण- सभाके सदस्य उनसे एक अनौपचारिक समारोहमें मिले। दूसरे दिन सायंकाल सार्वजनिक सभाके आयोजकोंने उन्हें अपने भवनमें प्रीति-भोज दिया। विद्वज्जनोंकी इन दोनों सांध्य परिषदोंमें श्री गांधीजीन लोगोंसे जो वार्तालाप किया, वह अत्यन्त रोचक और शिक्षाप्रद था । सरल जीवन और उच्च विचारके सिद्धान्तके मूर्तिमन्त स्वरूपके दर्शन करना अपने-आपमें एक बड़ी शिक्षा थी और उनका सहज व्यवहार तथा मुक्त और हार्दिक वार्तालाप उनकी पुनीत एवं प्रदीप्त आन्तरिक भावनाका द्योतक था। उन अवसरों- पर उनसे अनेक प्रश्न पूछे गये । श्री गांधीने सबके स्पष्ट उत्तर दिये:

अपनी भावी योजनाओंके सम्बन्धमें पूछे जानेपर उन्होंने कहा कि मैं अभीतक कुछ तय नहीं कर पाया हूँ और यह भी निश्चित नहीं है कि में सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटीका सदस्य बनूंगा या नहीं।

दक्षिण आफ्रिकाके बारेमें उनसे पूछा गया कि ऐसा क्यों है कि वहाँ लोग अब भी यह शिकायत कर रहे हैं कि वहाँकी समस्याका अन्तिम और सन्तोषजनक समा- धान नहीं हो पाया है, और आप किस अर्थमें उसे अन्तिम रूपसे हल हो गया मानते हैं ? उत्तरमें श्री गांधीने बताया कि शिकायतें दो प्रकारकी हैं; एक तो जिन्हें दूर कराने के लिए लोग अपनी सम्पत्ति और प्राण सब-कुछ बलिदान कर देने- यानी वस्तुतः सत्याग्रही बन जानेको तैयार थे; दूसरी वे जिन्हें लोग उतनी तीव्रतासे महसूस नहीं करते थे। उन्होंने कहा कि पहले दर्जेको शिकायतोंकी हदतक समाधान हो चुका है; यद्यपि कुछ दूसरी शिकायतें -जैसे बस्तियों और ट्रामगाड़ियों तथा रेलगाड़ियोंमें बरते जाने-