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भाषण: पूनाकी सार्वजनिक सभामें

यह बात तो आपके हाथमें है और भारतीय लोग इस सम्बन्धमें कानूनको रूसे किसी प्रकारकी शिकायत भी नहीं कर सकते। परन्तु बात यह थी कि मजदूरों और व्यापा- रियोंके रूप में भारतीय बड़े उपयोगी थे, और उनके बिना काम नहीं चल सकता था। यही कारण है कि उनका बहिष्कार नहीं किया गया।

यह पूछे जानेपर कि वहाँ हिन्दुओंके लिए मन्दिर और मुसलमानोंके लिए मसजिद आदि हैं या नहीं, श्री गांधीने कहा कि कुछ हैं तो जरूर, परन्तु नामके लिए ही। में उनसे सम्बन्धित पुजारियों और मुल्लाओंको जानता हूँ, परन्तु उनके चरित्रका जिक्र करते हुए मुझे बहुत दुःख होता है।

जब श्री गांधीजीसे यह पूछा गया कि दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीय तो भारतके भिन्न भिन्न प्रान्तोंके निवासी हैं, फिर वे आपसमें बातचीत किस प्रकार कर पाते हैं, तब उन्होंने गर्वके साथ कहा "हिन्दीके माध्यमसे । सामाजिक रस्मों के बारेमें उन्होंने बताया कि विभिन्न वर्गोंके हिन्दुओंके बीच खानपानका व्यवहार जरूर था, परन्तु शादी-विवाहका नहीं।

अब गांधीजीसे यह सवाल किया गया कि भारतीयोंने जिस देशको अपना बना लिया है, उस देशकी आबादी क्या उन्हें अपने भीतर पचा लेगी ? श्री गांधीने जोर देकर कहा कि "नहीं" -और इसका श्रेय है भारतीय सभ्यताको। उनके कहने के ढंगसे यह साफ झलकता था कि "तथाकथित पाश्चात्य सभ्यता " के बारेमें उनके खयाल कोई खास ऊँचे नहीं थे और भारतीय सभ्यताके विषयमें बोलते हुए वे गर्वका अनुभव कर रहे थे ।

[ अंग्रेजीसे ]

मराठा, १४-२-१९१५

२६. भाषण : पूनाकी सार्वजनिक सभामें

फरवरी १३, १९१५

शनिवारको श्री गांधी प्रोफेसर कर्वेके अनाथ-बालिकाश्रम, फर्ग्युसन कॉलेज और आनन्दाश्रम देखने गये। इन सब जगहोंमें उनका हार्दिक स्वागत किया गया । शामको उनके सम्मानमें किर्लोस्कर थियेटरमें एक सार्वजनिक सभाका आयोजन किया गया। बोलनेवाले सज्जनोंमें सभाके अध्यक्ष सरदार नौरोजी पदमजी, सर रा० गो० भाण्डारकर और श्री वाडिया थे ।

१. घोंडो केशव कर्वे (१८५८-१९६२), समाज-सुधारक; 'भारत-रत्न'; भारतीय महिला विश्वविद्यालय के संस्थापक। देखिए "भाषण : भारतीय महिला विश्वविद्यालय पर , २३-२-१९१६ ।

२. डॉक्टर रामकृष्ण गोपाल भाण्डारकर (१८३७-१९२५) प्राच्य विद्या-विशारद, ग्रंथ रचयिता; बम्बई विश्वविद्यालय के उपकुलपति, हिन्दू सामाजिक और धार्मिक सुधार आन्दोलनोंके अग्रगण्य कार्यकर्ता और नेता । देखिए खण्ड २, १४ ४१९ ।