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भाषण : कपोल छात्रावास, बम्बईमें

उतना ही ज्ञान आवश्यक है जितना व्यर्थ और बोझ न बन जाये। तुम छात्रोंके लिए यह विशेष रूपसे कहता हूँ कि चाहे तुम लड़के हो या लड़की, तुमने जो भी ज्ञान प्राप्त किया है, उसका लाभ तुम्हें उसी हदतक मिलेगा जिस हदतक तुमने उसे हृदयंगम किया होगा। इस संस्थाका उद्देश्य भी यही होना चाहिए। तुम जो भी पुस्तक पढ़ो, उसमें सत्य कितना है, यह सोचो । यदि तुम सत्यपर आरूढ़ रहोगे तो तुम्हें सफलता मिलेगी। मैं तुम्हें अपने अनुभवके आधारपर कहता हूँ कि तुमको जो ज्ञान मिलता है उसे सँजोकर रखना। उससे तुम्हें और देशको लाभ होगा।'

[ गुजरातीसे ]

काठियावाड़ टाइम्स, १७-२-१९१५

गुजराती, २१-२-१९१५

२८. भाषण : कपोल छात्रावास, बम्बई मे

[फरवरी १५, १९१५]

आप लोगोंने छात्रावासके लिए ७०,००० रुपये इकट्ठे किये हैं, इससे मुझे आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि कपोल जाति धनवान् है। गरीब छात्रोंको शिक्षित करना और धन्धोंमें लगाना इस जातिके धनी लोगोंका कर्त्तव्य है। आपने मेरे सम्बन्धमें प्रेमपूर्वक जो कुछ कहा है उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ। मैं इस छात्रावासको देखनेके लिए कदाचित् न आ पाता; किन्तु डा० जीवराजने इसमें रहकर इसे जो उज्ज्वल यश दिया है, उसके कारण मुझे इसे देखनेकी बड़ी इच्छा थी। मैं डॉ० जीवराजके सम्बन्ध में इतना ही कहूँगा कि वे युवा और देशप्रेमी हैं, इसलिए मुझे विश्वास है, वे भविष्यमें देशके लिए कुछ करेंगे। मैं कपोल जातिका ऋणी हूँ, क्योंकि श्री जगमोहनदास सामलदासने मुझे खासी मदद दी थी। जब मैं बैरिस्टर होकर आया उस समय यह भय था कि वे कुछ हिस्सा मांगेंगे; किन्तु उस समय श्री मूलजी बडभैयाने मेरी पर्याप्त सहायता की। छात्रोंसे मैं कहना चाहता हूँ कि वे अंग्रेजी और गुजरातीकी खिचड़ी बनाकर बोलने के बजाय अपनी मातृभाषा में बोलें । अन्तमें प्रत्येक छात्रसे मेरा आग्रह है कि वह सफलता प्राप्त करे, चरित्रवान बने और अपने परिवार और देशके लिए कुछ करे ।

[गुजरातीसे ]

गुजराती, २१-२-१९१५

१. गुजरातीसे ।

२. गांधीजी और कस्तूरबा छात्रावास देखने गये थे । गांधोजीने यह भाषण उसी समय दिया था। सेठ त्रिभुवनदास वरजीवनदासने समारोहकी अध्यक्षता की थी ।

३. डॉ० मेहता मई १९६० में पुराने बम्बई राज्यका विभाजन होनेपर गुजरातके प्रथम मुख्य मन्त्री हुए और दिसम्बर १९६३ में लन्दनमें उच्चायुक्त नियुक्त किये गये ।