पथ-प्रदर्शिका थी; और उस सर्वांग सम्पूर्णताका जो उनके हर कामकी खूबी थी -- अनुकरण कीजिए ।
याद रखिए कि हमारे शास्त्रोंका कथन है कि साधारण सद्गुणोंके अभ्याससे ही उच्चतर जीवन उपलब्ध होता है और अगर हम यह उच्चतर जीवन प्राप्त नहीं करते तो हमारा पूजापाठ, हमारा सारा करना-धरना व्यर्थ है।
भारत में में एक ऐसे वीरात्मा व्यक्तिकी खोजमें था जो वास्तव में सत्यनिष्ठ हो । वह मुझे श्री गोखलेके रूपमें मिल गया। भारतके प्रति उनका प्रेम और उनकी श्रद्धा सचमुच वास्तविक थी। देशकी सेवाके निमित्त उन्होंने स्वार्थ और सब प्रकारके सुखोंका सर्वथा त्याग कर रखा था, रोगशय्यापर भी वे भारतके हित-चिन्तनमें व्यस्त रहते थे। कुछ ही दिन पूर्व, एक रातको जब वे पीड़ासे कराह रहे थे, उन्होंने हममें से कुछको बुलाया और वे उनसे भारतके उज्ज्वल भविष्यकी चर्चा करने लगे- बताने लगे कि उसके सम्बन्धमें उनकी कल्पना क्या है। डॉक्टरोंने उनसे बार-बार कहा कि काम मत किया कीजिए, परन्तु उन्होंने उनकी सलाह न मानी। वे बोले: “मुझे तो कार्यसे केवल मृत्यु ही अलग कर सकती है; और अन्तमें मौतने ही उन्हें विश्राम दिया। ईश्वर उनकी आत्माको सद्गति दे।'
शान्तिनिकेतनसे प्रकाशित हस्तलिखित अंग्रेजी-मासिक आश्रम के जून और जुलाई १. १९१५ के अंकसे; और बॅगला तत्त्वबोधिनी पत्रिका के फरवरी, १९१५ के अंकमें प्रकाशित रिपोर्टसे भी ।
सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी
पूना सिटी
[ फरवरी २३, १९१५]
मैंने पूना जाते हुए गत २१ तारीखको ३ अप, मेल ट्रेनसे श्रीमती गांधी तथा दो अन्य व्यक्तियोंके साथ बर्दवानसे कल्याण तकका सफर किया; हमारे पास तीसरे दर्जेके
१. यह अनुच्छेद तत्वबोधिनी पत्रिकाके फरवरी १९१५ के अंकमें प्रकाशित बँगला-विवरणसे लिया गया है ।
२. पत्रके उत्तरसे ।