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पत्र: पूर्व भारतीय रेलवेके मुख्य ट्रैफिक मैनेजरको

नम्बर ७१८६ से ७१८९ तकके टिकट थे। जब गाड़ी प्लेटफार्मपर पहुँची तब मैंने देखा कि तीसरे दर्जेका डिब्बा खचाखच भरा हुआ है, और लेबिलपर दी गई संख्याके अनुसार उसमें जितने यात्रियोंको बैठना चाहिए उससे बहुत अधिक यात्री सवार हैं। हम लोगोंने भी उसमें घुसनेकी कोशिश की। रेल बाबूने, जो समीप ही खड़ा था, हम लोगोंको अन्दर दाखिल नहीं होने दिया। मैंने उस बाबूसे कहा, चूंकि हम लोगोंको जल्दसे- जल्द पूना पहुँचना है, इसलिए हम खड़े-खड़े ही यात्रा कर लेंगे। लेकिन उसने एक न सुनी। इसपर मैंने उससे अपना यह विचार प्रकट किया कि हम लोग तीसरे दर्जेमें स्थान मिल जाने तक ड्यौढ़में यात्रा कर लेंगे। यह बात स्वीकार कर ली गई। हम लोग ड्यौढ़े दर्जेके एक डिब्बेमें जा बैठे। उसने बाकायदा इस बातकी सूचना उस ट्रेन के गार्डको दे दी। गार्डने इस बातपर जोर दिया कि या तो हम जबलपुर स्टेशन तकका ड्यौढ़े दर्जे और तीसरे दर्जेके किरायोंका अन्तर अदा कर दें या डाकगाड़ीसे न जाकर बादमें आनेवाली यात्री-गाड़ीसे जायें। मैंने इस बातका विरोध किया, परन्तु उसका कोई असर नहीं हुआ। अब मेरे सामने इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं रह गया कि दोनों दर्जीके किरायोंके अन्तरकी रकम सविरोध चुकाना स्वीकार कर लूं। यह रकम हमसे आसनसोलमें वसूल ली गई। अतिरिक्त भाड़ेके टिकटका नम्बर २७४५७७ था और हम लोगोंको रु० १९-१२-० देने पड़े। मैंने टिकट बाबूसे रसीदपर यह लिख देनेको कहा कि मैंने अतिरिक्त किराया विरोधके साथ चुकाया है। उसने मेरा अनु- रोध अस्वीकार कर दिया। मैं ड्यौड़े दर्जेमें यात्रा करनेका इच्छुक तो था नहीं, इसलिए मैं और मेरे साथी ड्योढ़े दर्जेको छोड़कर तीसरे दर्जेमें जा बैठनेका अवसर ढूँढ़ रहे थे। यह अवसर मुगलसराय में हाथ आया। वहाँ मैंने टिकट कलेक्टरसे कहा कि अतिरिक्त किरायेकी रसीदपर यह नोट कर दीजिये कि हम मुगलसरायसे तीसरे दर्जेमें यात्रा कर रहे हैं। परन्तु उसने मेरी बात नामंजूर कर दी।

निवेदन है कि ऐसी परिस्थितिमें उचित तो यह था कि मेरे तथा मेरे साथियोंके लिए तीसरे दर्जेमें जगह ढूंढ़ दी जाती; और अगर यह सम्भव न था तो हम लोगोंको, हमसे अतिरिक्त किराया वसूल न करके, तबतक ड्यौढ़ेमें सफर करने दिया जाता जबतक तीसरे दर्जेमें जगह न मिल जाती। जो भी हो, जबलपुर तकका अतिरिक्त भाड़ा चुकाने पर जोर देना अनुचित था । और चूँकि हम लोग मुगलसराय स्टेशनपर तीसरे दर्जेमें जा बैठे थे, इसलिए मुगलसरायसे जबलपुर तकका तीसरे और ड्यौड़े दजोंके किरायोंका अन्तर हमें वापस न मिलनेका कोई कारण नहीं है।

मुझे विश्वास है कि रेलवे प्रशासन सम्बन्धित विभागको पूराका-पूरा अतिरिक्त किराया वापस कर देनेका आदेश जारी कर देगा।

मैंने इस मामलेकी ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना अपना कर्त्तव्य समझा है सो जितना इस खयालसे कि अतिरिक्त किरायेकी रकम वापस कर दी जाये (मेरी यात्राका खर्च सार्वजनिक कोषसे चुकाया गया था) उतना ही इस सिद्धान्तकी रक्षाके खयालसे भी कि तीसरी श्रेणीके यात्रियोंको रेलवेके कर्मचारियोंसे समुचित व्यवहार पानेका हक है। मैंने देखा कि कई अधिकारी उनके साथ अशिष्टता और असहिष्णुतासे