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३९. भाषण : गोखलेके निधनपर आयोजित शोक सभामें

पूना

मार्च ३, १९१५

३ मार्च, १९१५ को श्री गोखलेकी मृत्युपर शोक प्रकट करनेके लिए किर्लोस्कर थियेटरमें पूनाके नागरिकोंकी एक सभा हुई। जिसकी अध्यक्षता बम्बईके गवर्नर महोदयने की। सभा-भवन खचाखच भरा हुआ था। जिसमें श्री गांधी द्वारा पेश किये गये निम्न- लिखित प्रस्ताव पास हुए:

इस प्रस्ताव के द्वारा सभामें एकत्र पूनाके नागरिकगण माननीय श्री गोखलेकी, जो समस्त देशके नेता थे और जिन्होंने अपनी निष्ठा तथा त्यागभावनाके द्वारा निःस्वार्थ सार्वजनिक सेवाका ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत किया है, असामयिक मृत्युके कारण देशको, और विशेषतः पूनाको जो महान् क्षति हुई है, उसको लिखित रूपमें व्यक्त करते हैं । यह सभा श्री गोखलेकी पुत्रियों तथा उनके अन्य सम्बन्धियों के प्रति उनके शोकमें हार्दिक समवेदना प्रकट करती है और अध्यक्षसे निवेदन करती है कि इस प्रस्तावको उनके पास भेज दें।'

उक्त प्रस्ताव पेश करते हुए श्री गांधीजीने दिवंगत राजनयिककी प्रशंसा एक ओजस्वी भाषण दिया। उन्होंने कहा कि उन स्वर्गवासी देशभक्त की स्मृतिम परमश्रेष्ठ लॉर्ड विलिंग्डनने जो शब्द कहे हैं, उनके बाद मैं कुछ कहूँ, तो यह मेरी धृष्टता ही होगी। हाँ, एक बात कहना चाहूँगा, मेरा मतलब उनकी गहरी धार्मिक भावनाओंसे हैं, जिनके कारण किसी भी कार्यको सभ्यरूपसे करना उनके स्वभावका एक विशेष गुण हो गया था। उनकी अन्तरात्मा भी बहुत जागरूक थी। मृत्युसे कुछ ही पहले श्री गोखलेके सामने यह प्रश्न उठा कि वे अमुक सम्मेलनमें जायें या नहीं। बहुत सोच- विचारके पश्चात् उन्होंने देश-हितको ध्यानमें रखकर, उस सम्मेलनमें जाना निश्चित किया; यद्यपि इसमें उनकी जानको बहुत खतरा था।

[अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ४-३-१९१५
अमृत बाजार पत्रिका, ५-३-१९१५



१. बॉम्बे क्रॉनिकलमें प्रकाशित रिपोर्टसे ।

२. अमृत बाजार पत्रिकामें प्रकाशित रिपोर्टसे ।