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४०. पत्र : मगनलाल गांधीको

[ बम्बई ]

फाल्गुन बदी ३ गुरुवार [ मार्च ४, १९१५ ]

चि० मगनलाल,

यह पत्र बम्बईसे लिख रहा हूँ। शायद में एक दिन यहाँ भी रुकूँगा। मुझे तुम्हारे तीन पत्र इकट्ठे पूनामें मिले। हम यह संस्था सारे देशके लिए चलाना चाहते हैं। इसीलिए सारे देशसे भीख माँगेंगे। किन्तु हम अहमदाबादसे आवश्यक जमीन और मकान माँग रहे हैं। इसे हमारी संस्थाकी बुनियाद समझो।

जहाँतक हो सकेगा, वहाँतक हम मशीनोंके बिना काम चलायेंगे। इससे कारखाने बन्द हो जायेंगे, इसकी फिक्र करनेकी हमें जरूरत नहीं है। यदि मिल-मालिक नये कारखाने न खोलें तो भी बुराई कुछ नहीं और यदि नये कारखाने खोलते चले जायें तो भी हमने जिस काममें सुख माना है, उसीमें लगे रहेंगे।

अभी तुम ब्रह्मचर्यके सम्बन्धमें कुछ नहीं समझे। यदि आज केशूको [विवाहसे ] मुक्ति मिल जाये तो क्या तुम दुःखी होओगे? यदि इसमें दुःख मानो तो यह दशा कितने गहन मोहकी सूचक है ? अच्छे लोग सन्तानोत्पत्ति करेंगे तो उनकी सन्तान संसारको सुखमय बनायेगी, ऐसा सोचना अहंकार और अज्ञानसे भरा हुआ जान पड़ता है। अच्छे लोग सांसारिक प्रवृत्तियोंकी इच्छा नहीं करते। वे तो संसारसे निवृत्ति अर्थात् मोक्ष चाहते हैं। अच्छे लोगोंके लिए उनके साथी ही सन्तान रूप हैं। जबतक इतना भी न माना जाये तबतक मानना चाहिए कि बहुत अज्ञानकी अवस्था बनी हुई है। इस सबका अर्थ यह नहीं है कि केशू कभी विवाह ही न करेगा। उसके जैसे संस्कार होंगे उसमें वैसी ही बुद्धि आयेगी। तुम्हारा कर्त्तव्य यह है कि तुम उसके सम्मुख ऊँचीसे- ऊँची स्थिति रख दो । यदि वह उस तक न पहुँच पाये तो भी चिन्ता नहीं। ऐसे व्यक्तिकी सन्तान लोक-हित कर सकेगी। किन्तु यदि वह उत्तम सन्तान उत्पन्न करनेके विचारसे ही ब्रह्मचर्यको भंग करेगा तो उसकी सन्तान उत्तम हो सकेगी। इन दोनों स्थितियोंका भेद खूब समझ लो । एक स्थिति ज्ञानसे प्राप्त होती है और दूसरी स्थितिमें सब कुछ जानते हुए भी दुर्बलताके कारण पतन होता है। इसमें फिर ऊँचा उठनेकी गुंजाइश है। पहली अवस्थामें ऊँचा न उठनेका निश्चय है। इसमें ऊँचा उठना ही पतन माना गया है। हम ठीक शिक्षा देते रहें और केशू फिर भी विवाह कर ले तो इसमें कोई हानि नहीं। यदि वह विवाह न करे तो उसमें ऐसा तेज आ सकता है

१. चूँकि पत्रमें अहमदाबाद में संस्थाकी स्थापनाका उल्लेख है, इसलिए यह १९१५ में लिखा गया जान पड़ता है। इस तिथिको गांधीजी बम्बईमें थे और उससे पूर्व, २२ फरवरी और ३ मार्चके बीच में वे पूनामें थे ।

२. मगनलालके पुत्र ।