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मोढ मण्डल, कलकत्ता द्वारा दिये गये मानपत्रका उत्तर

जिससे समस्त संसार तर सके। माँ-बापको अपनी सन्तानके लिए सर्वोत्तम अवस्थाकी इच्छा करनी चाहिए। फिर उसमें जितनी योग्यता होगी उतना ही वह उस शिक्षणसे ग्रहण कर लेगा। निस्सन्देह मेरे विचारमें कोई दोष नहीं है। तुम इसे भली-भाँति समझ लो। यह मेरी इच्छा है। तुम दुर्बलताको बल न समझ लेना । मोहको ज्ञानका स्थान न देना। खूब सोचना । इस पत्रको सँभालकर शान्तिनिकेतन मगनभाईको भेज देना ।

मैंने रावजी भाईको यहाँ आनेके लिए तार दिया है। इस पत्रको वहाँ किसीको पढ़वाना आवश्यक हो तो पढ़वा देना।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

अगर मेरा वहाँ आना जरूरी जान पड़े तो बोलपुर आदि होते हुए ही जाऊँ यही ठीक लगता है।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ११०) से।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

४१. मोढ मण्डल, कलकत्ता द्वारा दिये गये मानपत्रका उत्तर

मार्च १२, १९१५

श्री गोखलेकी असामयिक मृत्युसे मैंने एक ऐसा मित्र, मार्गदर्शक और तत्त्ववेत्ता खो दिया है जिसके पद-चिह्नोंपर चलकर मैं मातृभूमिकी सेवा करने चला था। उन्होंने अपनी मृत्यु-शैयापर से अपने मित्रोंसे आग्रह किया था कि भारतीय अपनी मातृभूमिके प्रति सच्चे रहें और उसकी सेवा करें।

[ गुजरातीसे ]
खेड़ा वर्तमान, २४-३-१९१५



१. पटेल ।

२. उपलब्ध नहीं है।