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४२. भाषण : कलकत्ताके स्वागत-समारोहमें

मार्च १३, १९१५

मैं नहीं जानता कि आप लोगोंके इस हार्दिक स्वागतके प्रति में अपनी कृतज्ञता किन शब्दोंमें व्यक्त करूँ। (अध्यक्ष) महोदय, आपने मुझे आशीर्वाद देनेके साथ ही एक कर्त्तव्य भी सौंपा है। मैं चाहता हूँ कि मुझे आपके इस आशीर्वादके योग्य सिद्ध होनेकी पात्रता और आपके द्वारा सौंपे गये कार्यको पूरा करनेके योग्य शक्ति एवं तत्परता मिले । कलकत्तेमें आकर अनेक पुनीत और भव्य स्मृतियाँ जाग्रत हो रही हैं। यहीं, सन् १९०२ में मैंने श्री गोखलेको अपने राजनीतिक गुरुके रूपमें ठीक-ठीक पहचाना था। जो मुझे आव- श्यक जान पड़ा वह सब मैंने उन्हींके चरणोंमें सीखा। उन्हींके निवास स्थानपर डॉ० प्र० चं० रायसे मेरा परिचय हुआ। सोचता था, कौन जाने कलकत्ता पहुँचनेपर उनके दर्शन हो पाते हैं या नहीं। किन्तु, ईश्वरकी कृपासे उनके दर्शन हो गये । आपने मेरे विषयमें ऐसी अनेक बातें कही हैं, जिनका मैं अपनेको पात्र नहीं मानता। यदि मैं भी आपके हृदयमें स्थान बना सकता हूँ तो फिर हरबत सिंहके सम्बन्धमें आप क्या करना चाहेंगे, जो दक्षिण आफ्रिकामें अपने मित्रोंकी तथा मेरी भी इच्छाके विरुद्ध जेल गये थे। श्री गांधीने कहा कि हरबत सिंहकी मृत्यु कारावासमें हुई। फिर, वलिअम्मान जो- कुछ किया, उसका वर्णन करनेमें तो मैं असमर्थ ही हूँ। उससे प्यारी लड़की इस धरतीपर नहीं जन्मी । उसकी उम्र केवल १७ वर्षकी थी । आप हरबत और वलि- अम्माको क्या देंगे ? यदि कोई किसी आदरका पात्र है तो वह हरबत सिंह और वलिअम्मा - जैसे व्यक्ति ही हैं। अगर अपने हृदयमें स्थान देना है तो उन्हें दें, न कि इंग्लैंडसे आयात किये गये मुझ-जैसे "बहादुरों" को। मैं जो कुछ भी कर या कह पाया हूँ, वह सब मैंने इंग्लैंडमें सीखा है। हरबत अशिक्षित थे । वे अंग्रेजीका एक शब्द भी नहीं जानते थे, फिर भी वे हम सबसे बढ़-चढ़कर थे । सम्मानको पात्र तो वलि- अम्मा है, न कि मेरी पत्नी | श्री गांधीने आगे कहा कि मेरी प्रेरणाका स्रोत श्री गोखलेका जीवन है और मेरे सामने अभी जो कार्य पड़ा हुआ है, उसके सम्पादनमें भी में उन्होंके जीवनसे प्रेरणा पाता रहूँगा। मेरे बारेमें कहा जाता है कि मैं कानून- शिकनी नहीं करता हूँ। इसे पूरा-पूरा सच मान लेना ठीक न होगा। हम लोगोंको

१. यह सभा महाराजा कासिमबाजारके महलके मैदानमें बाबू मोतीलाल घोषकी अध्यक्षतामें हुई थी।

२. सर प्र० चं० राय (१८६१-१९४४); वैज्ञानिक और देशभक्त ।

३. दक्षिण आफ्रिकाके संघर्ष में शहीद हुई थीं; देखिए “भाषण : मद्रासके स्वागत समारोहमें " २१-४-१९१५ ।

४. इस सभामें माननीय सुरेन्द्रनाथ बनर्जीने अपने भाषण में गांधीजीकी प्रशंसा करते हुए कहा कि श्री गांधीका नाम इतिहासमें दीर्घकाल तक रहेगा । श्री गांधी कानून तोड़ेंगे नहीं, वे उसका पालन करेंगे और उसपर विजयी भी होंगे । बंगालके क्रान्तिकारियोंको इनके उदाहरणसे एक सबक सीख लेना चाहिए और उसका अनुसरण करना चाहिए । श्री गांधीने अपनी नैतिक शक्तिके द्वारा कानूनपर विजय पाई है।