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पत्र : नारणदास गांधीको

तो दक्षिण आफ्रिकामें कानून तोड़नेवाला ही कहा जाता था। मैंने वहाँ कानून तोड़ा और जो कानून मेरी अन्तरात्माको अमान्य था उसके अन्तर्गत सजा भोगना स्वीकार किया ।

बाबू हेमेन्द्रनाथ सेनने अध्यक्षको सभाको ओरसे धन्यवाद दिया।

सभा विसर्जित होनेसे पूर्व मौलवी लियाकत हुसैनने "वन्देमातरम् "का नारा लगाया; समस्त सभाने उसे दुहराया । अन्तमें कुछ व्यक्तियोंने समवेत स्वरमें "वन्देमातरम् " गीत गाया।

[अंग्रेजीसे ]
अमृत बाजार पत्रिका, १५-३-१९१५
४३. पत्र : नारणदास गांधीको
चि० नारणदास,

रंगून जाते हुए

फाल्गुन बदी १४ [ मार्च १४, १९१५]

डेककी यात्राका बहुत कटु अनुभव हो रहा है;किन्तु वह सभीको होता है।बा, रामदास और में जा रहे हैं। उम्मीद है,इस मासके अन्तमें शान्तिनिकेतन पहुँच जायेगे।

मैं देखता हूँ, हरिलाल और मेरे बीचमें गलतफहमी पदा हो गई है। वह बिलकुल अलग हो गया है। उसे में अब पैसेकी मदद नहीं दूंगा। मैंने उसे ४५ रुपये दे दिये और फिर हमने कलकत्ते में एक दूसरेका साथ छोड़ दिया। दोनोंने किसी प्रकारकी कटुताका अनुभव नहीं किया। उसे मेरी पुस्तकों और मेरे कपड़ोंमें से जो कुछ चाहिए, ले लेने देना । चाबी उसे सौंप देना । जो कुछ निकालना होगा, निकाल कर वह चाबी लौटा देगा। खोई हुई चाबी मिल गई है, यह बात तुम्हें मालूम होगी। रेवाशंकर भाईके पास थी। न मिली हो तो उनसे ले लेना।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पेंसिलसे लिखे मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६६८) से। सौजन्य : नारणदास गांधी



१. गांधीजी रंगून जाते हुए इस तारीखको जहाजपर थे।