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पत्र : जमनादास गांधीको

हाथ बँटाया था, परन्तु तमिल लोगोंने विशेष रूपसे । उन लोगोंके बीच किसी भी व्यक्तिके लिए इस सामाजिक उद्देश्यकी खातिर कमसे-कम एक बार जेल न जाना लज्जाका विषय माना जाता था। यह बात और किसी जातिके लोगोंके बारेमें नहीं कही जा सकती, परन्तु तमिल लोगोंके विषयमें तो यह सोलहों आने सच है। मैं प्रारम्भसे ही उनका प्रशंसक बन बैठा। और बादमें तो वे मेरी नजरोंमें उठते ही गये।उन्होंने कहा:

मेरा खयाल है कि तमिल-समाजके लोगोंसे मेरा जितना साम्य है, उतना अन्य किसी भी समाजके लोगोंसे नहीं।

इसके अनन्तर मैंने गांधीजीसे पूछा कि क्या बर्माकी यात्रा करनेमें आपका कोई प्रच्छन्न उद्देश्य था।...उन्होंने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया: मेरा कार्यक्षेत्र भारत है।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ३०-३-१९१५
४८. पत्र : जमनादास गांधीको

चैत्र सुदी १२ [ मार्च २८, १९१५ ]

चि० जमनादास,

तुम्हारा पत्र मिला । आहारके सम्बन्धमें अपने अनुभव तो तुम कुछ समय बाद ही लिख सकोगे। धीरज रखनेसे बात बनेगी। आँखोंके लिए चश्मेकी आवश्यकता पड़नेकी सम्भावना रहती है; लेना है या नहीं, इसपर विचार करेंगे। स्तम्भ अचानक गिर गये इससे तो मुझे भी आश्चर्य है। यदि वे ही स्तम्भ हों जिनपर अमूल्य शिलालेख थे, तो यह बुरा हुआ। तुमने तो ठीक ही किया। अपनी शंकाका निवारण करवा कर उनको तोड़ा, यही उचित था। मुझे वह स्थान बताना । बात उसके बाद अधिक समझी जा सकेगी। मेरा खयाल है कि इमलीसे कमजोरी नहीं आती। अवश्य ही अधिक भोजन किया होगा।

फिक्शनका अर्थ है कल्पित बात । रामायण और महाभारतमें इतिहास कम और कल्पना अधिक है, इसमें सन्देह नहीं। ये दोनों ही धर्म-ग्रन्थ हैं। करोड़ों लोग उन्हें इतिहाससे अधिक महत्त्व देते हैं और यह उचित ही है। भरत जैसा रामका भाई भले ही न हुआ हो; किन्तु वैसे भरत भारतमें हुए हैं। तभी तो तुलसीदास उनकी कल्पना कर सके। जिन लोगोंमें रामायणमें वर्णित गुण हैं, भारतवर्ष उनकी वंदना करता है।

यदि सत्याग्रह करनेसे हमारी अबतककी मेहनत बेकार हो जाये और फीनिक्स उजड़ जाये तो हमें तनिक भी चिन्ता न करनी चाहिए । शान्तिके दिनोंमें खेती करो । अशान्तिमें भीख माँगो, मजदूरी करो या भूखे मरो। किया हुआ काम व्यर्थ नहीं जाता,

१. गांधीजी २६ मार्चको रंगूनसे रवाना हुए थे ।