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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह निरपवाद नियम है। अपने हृदयमें यह दृढ़ विश्वास रखो और फिर खेती करनेका अवसर आये तो खेती करो । न आये तो निश्चित रहो। खेती साध्य नहीं है, साधन है। स्थूल रूपमें कहें तो लोकसेवा साध्य है, सूक्ष्म रूपमें कहें तो मोक्ष साध्य है। दोनोंको सिद्ध करनेका साधन खेती है। यदि वह खेती साध्यकी प्राप्तिमें विघ्न रूप बन जाये तो उसे त्याग देना चाहिए ।

क . . . जो छूट लेता है वह अनुचित है। फिर भी हमें ऐसे व्यक्तिको सहन करना चाहिए. -यह मानकर कि वह स्वादका त्याग कर देगा। हमारा संग उसके लिए तो सत्संग ही है। हम उसके लिए जितनी सुविधा कर सकें उतनी कर देनी चाहिए। जो नियम क . . . के लिए रहे वह दूसरोंपर लागू न किया जाये । इसका अर्थ यह है कि इन मामलोंमें एक ही नियम न रखा जाये । क...[फिर] भी अति करे तो ठीक न होगा।

हम श्री गोखलेके कारण इस संस्थाको भी 'फीनिक्स' कहते जा रहे हैं। उनका कहना था कि अन्य लोग और वे स्वयं इस नामसे उसके उद्देश्योंको तुरन्त समझ सकेंगे । फीनिक्स संस्थाके जो उद्देश्य थे, उनमें से बहुतसे उद्देश्य यहाँको संस्थाके भी हैं और चूँकि वे स्वयं फीनिक्सके उद्देश्योंको समझते थे, इसलिए उन्होंने [ इसका भी ] यह नाम रखा । हमें इस नामको सदाके लिए नहीं रखना है; हम जब स्थायी रूपसे टिक जायेंगे तो नाम खोजेंगे। में कपड़े संभालकर रखूंगा और तुम्हें दे दूंगा । किन्तु मैंने जिन कपड़ोंको पहन कर जीर्णशीर्ण कर दिया होगा वे तो बेकार हो गये होंगे। इसलिए अब तुम्हें छाँटना पड़ेगा। मुझे रंगूनमें अच्छे अनुभव हुए हैं।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्रकी प्रतिलिपि (सी० डब्ल्यू० ५६८४) से।

सौजन्य : नारणदास गांधी

४९. भाषण : विद्यार्थी भवन, कलकत्तामें'

मार्च ३१, १९१५

श्री गांधीने बुधवारकी शामको विद्यार्थी भवन, कॉलेज स्क्वेयरमें माननीय श्री पी० सी० लायन्सकी अध्यक्षतामें आयोजित एक बड़ी सभामें भाषणके दौरान बताया कि वेशके कुछ गुमराह युवकोंके अराजकतापूर्ण कामोंको देखते हुए दूसरे तरुणोंका क्या कर्तव्य है। मेरे गुरु स्वर्गीय श्री गोखलेका आवेश था कि मैं यहाँ रहनेकी अवधिमें

१. यह भाषण पहले "तरुण-बंगालको श्री गांधीकी सलाह ” (मि० गांधीज एडवाइस टू यंग बंगाल )के नामसे और फिर " अराजकता सम्बन्धी अपराधों के बारेमें" (ऑन ऐनारकिकल क्राइम्ज) शीर्षकसे नटेसन द्वारा प्रकाशित स्पीचेज़ ऐंड राइटिंग्ज़ ऑफ महात्मा गांधी नामक पुस्तकमें प्रकाशित हुआ था ।