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भाषण : विद्यार्थी भवन, कलकत्तामें

अपने कानोंको तो खुला रखूँ, परन्तु अपना मुंह बन्द ही रखूँ; तथापि मैं इस सभामें भाषण देनेका लोभ संवरण नहीं कर सका। मैं और मेरे स्वर्गीय गुरु दोनोंकी यह मान्यता है कि विद्यार्थी-समाजके लिए राजनीतिका ज्ञान निषिद्ध नहीं होना चाहिए । मुझे इसका कोई कारण दिखाई नहीं देता कि विद्यार्थी राजनीतिका अध्ययन न करें और उसमें भाग न लें ? मैं तो यहाँतक कहूँगा कि राजनीतिको धर्मसे अलग नहीं किया जाना चाहिए। आप और आपके शिक्षक, अध्यापक और इस सभाके सुयोग्य सभापति, सभी इस बातमें मुझसे सहमत होंगे कि यदि साहित्यिक शिक्षा दृढ़ चरित्रका निर्माण करने में समर्थ नहीं तो उसका कोई मूल्य नहीं है। क्या यह कहा जा सकता है कि इस देशके विद्यार्थी या नेता सर्वथा निर्भय हैं ? यद्यपि में इस समय [ राजनीतिक ] निर्वासनको अवधिमें हूँ, फिर भी इसपर बड़ी गम्भीरतापूर्वक विचार करता रहा हूँ। में जानता हूँ कि राजनैतिक डकैती या राजनैतिक हत्या क्या है ? मैंने इस विषयपर शुद्ध और विनम्र भाव रखकर अत्यन्त सावधानीसे विचार किया है और मैं इस निर्णयपर पहुँचा हूँ कि निःसन्देह हमारे देशके विद्यार्थियों में से कुछके हृदयोंमें जोश है और अपनी मातृभूमिके लिए उनके दिलमें बड़ा प्रेम है। परन्तु वे नहीं जानते कि इस प्रेमको सर्वोत्तम अभिव्यक्ति क्या है? मेरी समझमें कुछ युवक हीन साधनोंका सहारा इसलिए लेते हैं कि उन्हें ईश्वरका नहीं बल्कि मनुष्यका भय है। मैं यहाँ आपसे यह कहने आया हूँ कि यदि हम राजद्रोहको उचित मानते हैं तो ऐसा कहें, प्रकट रूपसे उसकी चर्चा करें और उसका परिणाम भोगें । यदि ऐसा आचरण किया जाये तो उससे वातावरण निर्मल होगा और किसी प्रकारके छलका सन्देह भी दूर हो जायेगा। यदि विद्यार्थी, जिनपर भारतकी ही नहीं, बल्कि साम्राज्यकी आशाएँ केन्द्रित हैं, ईश्वरके भयसे नहीं बल्कि मनुष्य के भयसे, अधिकारियों अर्थात् सरकार, चाहे उसका प्रतिनिधित्व ब्रिटिश करते हों चाहे कोई देशी संस्था -- के भयसे काम करेंगे तो इसका परिणाम देशके लिए विनाशकारी सिद्ध होगा। आपको परिणामकी परवाह किये बिना निष्पक्ष भावसे विचार करनेके लिए तैयार रहना चाहिए। जो डकैतियों और हत्याओंकी शरण ले रहे हैं, वे नौजवान गुमराह हैं और आपको उनसे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। आपको चाहिए कि आप उन लोगोंको अपना और अपने देशका शत्रु समझें । परन्तु मैं एक क्षणके लिए भी यह नहीं कहूँगा कि आप उन लोगोंसे घृणा करें। मैं सरकारमें विश्वास नहीं करता, मेरी चले तो कोई सरकार न रहे। मेरा विश्वास है कि वही सरकार सर्वोत्तम है जो कमसे-कम शासन करती है। मेरे व्यक्तिगत विचार कुछ भी क्यों न हों, इतना तो मैं जोर देकर कहूँगा कि डकैतियों और हत्याओंका सहारा लेनेवाले गुमराह जोशका कोई अच्छा फल नहीं हो सकता। ये डकैतियाँ और हत्याएँ भारतके लिए सर्वथा नई चीज हैं। यहाँ इनकी जड़ें नहीं जम सकतीं और ये चीजें यहाँ स्थायी नहीं बन सकतीं। इतिहाससे सिद्ध होता है कि हत्याओंसे कोई लाभ नहीं होता। इस देशका धर्म---हिन्दू धर्म है। हिंसासे अर्थात् पशुओं तकके प्राण लेनेसे