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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बचना । मेरा विश्वास है कि यही सिद्धान्त सब धर्मोका मूल सिद्धान्त है। हिन्दू धर्मके अनुसार बुरा करनेवालेसे भी घृणा नहीं करनी चाहिए; वह कहता है किसीको बुरा करनेवालेकी भी हत्या करनेका अधिकार नहीं है। पश्चिममें ऐसी हत्याएँ रूढ़ हैं; में आपको इन पाश्चात्य ढंगों और बुराइयोंके प्रति सचेत करना चाहता हूँ। पाश्चात्य जगत्में उनका क्या प्रभाव हुआ है ? यदि नौजवान उनका अनुकरण करते हैं और यह मानते हैं कि इससे भारतको थोड़ा-भी लाभ पहुँच सकता है तो यह सर्वथा उनकी भूल है। यद्यपि मैं भली प्रकार जानता हूँ कि अंग्रेजी शासनमें सुधारकी बहुत गुंजाइश है, फिर भी मैं इस बहसमें नहीं पहूंगा कि भारत के लिए ब्रिटिश सरकार अच्छी है या पहले की सरकारें अच्छी थीं।

परन्तु में अपने नौजवान दोस्तोंको सलाह दूंगा कि वे निर्भय और सच्चे बनें तथा धर्मके सिद्धान्तोंका अनुसरण करें। यदि उनके पास देशके लिए कोई कार्यक्रम है तो उन्हें चाहिए कि उसे खुले आम जनता के सामने रखें। जो नौजवान यहाँ उपस्थित हैं, उनसे इस अपीलके साथ में अपना भाषण समाप्त करता हूँ कि वे धार्मिक बनें और धर्म और नैतिकताकी भावनासे परिचालित हों। यदि आप मरनेके लिए तैयार हैं तो मैं भी आपके साथ मरनेके लिए तैयार हूँ। मैं आपका मार्ग दर्शन स्वीकार करनेके लिए तैयार हूँ। परन्तु यदि आप देशको आतंकित करना चाहते हैं तो मैं आपके विरुद्ध खड़ा होऊँगा ।

इसके बाद अध्यक्षने अपने प्रवाहपूर्ण भाषणमं गांधीजीके व्याख्यानकी प्रशंसा की और यह सुझाव दिया कि देशसे विप्लवके रोगको दूर करनेके लिए नवयुवकोंको एक दलका संगठन करना चाहिए। उन्होंने श्री गांधीको धन्यवाद दिया।

श्री गांधीने इसका उपयुक्त उत्तर देते हुए विद्यार्थी-समुदायसे कहा कि वे चाहें तो उनसे पत्र-व्यवहार करें। उन्होंने उनके पत्रोंका तुरन्त उत्तर देनेका वादा किया।

[अंग्रेजीसे]
अमृत बाजार पत्रिका, १-४-१९१५
सौजन्य : राष्ट्रीय पुस्तकालय, कलकत्ता