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५०. गुरुकुल कांगड़ीमें दिये गये मानपत्रका उत्तर

अप्रैल ८, १९१

श्री और श्रीमती गांधी कुम्भीपर्वके अवसरपर हरद्वार गये थे । ८ अप्रैलको वे गुरुकुल कांगड़ी गये । प्राध्यापक महेशचरणसिंहने ब्रह्मचारियोंके एक दलके साथ उनका स्वागत किया। इस अवसरपर उन्हें एक मानपत्र दिया गया, जिसे ब्रह्मचारी बुद्धदेवने पढ़ा।

श्री गांधीने मानपत्रका उत्तर देते हुए कहा:

मेरे प्रति महात्मा मुंशीरामजीका जो प्रेम है उसके लिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ, मैं सिर्फ उनसे मिलनेके लिए ही हरद्वार आया हूँ, क्योंकि श्री ऐन्ड्रयूजने उनका नाम भारतके उन तीन महान् पुरुषोंमें गिनाया था जिनसे मुझे मिलना चाहिए।

श्री गांधीजीने कहा कि ब्रह्मचारियोंने अपने आफ्रिकावासी भारतीय भाइयोंके सहाय- तार्थ जो धन भेजा है उसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ और गुरुकुलमें फीनिक्स- वासी छात्रों के प्रति प्रेम और स्नेहका व्यवहार किये जानेपर ब्रह्मचारियोंका और महात्माजी [ मुंशीराम ] का विशेष आभार मानता हूँ। मुझे अपनी गुरुकुलकी तीर्थ-यात्रासे बहुत सन्तोष हुआ है।

उन्होंने अपने भाषण में आगे कहा:

महात्माजीने मुझे अपने एक पत्रमें 'भाई' कहा है, इसका मुझे गर्व है। कृपया आप लोग यही प्रार्थना करें कि मैं उनका भाई बननेके योग्य हो सकूं। मैं २८ वर्ष बाद अपने देश में आया हूँ, मैं कोई सलाह नहीं दे सकता। मैं तो मार्गदर्शन प्राप्त करनेके लिए आया हूँ। और जो भी मातृभूमिकी सेवामें लगा है ऐसे प्रत्येक व्यक्तिके सम्मुख झुकनेके लिए तैयार हूँ। मैं अपने देशकी सेवामें अपने प्राण देनेके लिए तैयार हूँ। अब मैं विदेश नहीं जाऊँगा। मेरे एक भाई चल बसे हैं। मैं चाहता हूँ कोई मेरा मार्गदर्शन करे। मुझे आशा है कि महात्माजी उनका स्थान ले लेंगे और मुझे भाई मानेंगे।

उन्होंने ब्रह्मचारियोंसे कहा:

आपका जो उद्देश्य है वही हम सबका भी है। ईश्वर हमारे पवित्र कार्यको सफल करे ।

महात्मा मुंशीरामजीने उनका स्वागत करते हुए कहा: मुझे यह सुनकर प्रसन्नता हुई है कि आप अब भारतमें रहेंगे और अन्य लोगोंकी भाँति बाहर रहकर भारतकी सेवा करनेके लिए विदेश नहीं जायेंगे। मुझे आशा है कि श्री गांधी भारतके लिए ज्योति-स्तम्भ बन जायेंगे ।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १२-४-१९१५
१. लक्ष्मीदास गांधी ।
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